Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 313
________________ 3333333 22333333333333333333333333333333333333 -RAM CR cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 इति।तथा मनःपर्यायज्ञानिनश्च तथा अनाहारका अपर्याप्तकाश्च पूर्वसम्यग्दृष्टयः सुरनारका ca अप्यपान्तरालगत्यादाविति, शक्तिमधिकृत्येति भावार्थः। पूर्वप्रतिपन्नास्तु त एव ये मतेः / विकलेन्द्रियासंज्ञिशून्या इति।उक्तमवधिज्ञानमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) 'गति' शब्द तो उपलक्षण है, अतः अतः गतिशब्द से , गृहीत हैं- इन्द्रिय आदि सभी प्ररूपणा के विशेष द्वार। इसलिए (अर्थ होगा-) जो भी गति , आदि तथा सत्पद-प्ररूपणा की विधि द्रव्य-प्रमाण आदि, जिस रूप में पीछे मति व श्रुतज्ञान के प्रसंग में वर्णित अर्थात् उपदिष्ट हुए हैं, उसी रूप में यहां (अवधिज्ञान में) भी विचारणायोग्य , ल हैं। विशेष ज्ञातव्य यह है- वहां जो ‘मति' को प्राप्त करने वाले कहे गए हैं, वे ही अवधि के 2 & प्राप्तकर्ता भी हैं। किन्तु (विशेष बात यह है कि उनके अतिरिक्त भी अवधि के कुछ प्रतिपद्यमान .. होते हैं, जैसे कि) अवेदक ('वेद' से अतीत) और अकषायी भी, क्षपकश्रेणी में रहते हुए . अवधि के 'प्रतिपद्यमान' होते हैं। इसी तरह मनःपर्ययज्ञानी, तथा अनाहारक, अपर्याप्तक, : पूर्वसम्यग्दृष्टि देव व नारक भी अन्तराल गति आदि में शक्ति की दृष्टि से अवधि के प्रतिपद्यमान' : होते हैं- यह तात्पर्य है। मतिज्ञान के जिन्हें पूर्वप्रतिपन्न कहा गया था, उनमें विकलेन्द्रिय & असंज्ञी जीवों को छोड़ कर, (शेष) सभी अवधि के भी पूर्वप्रतिपन्न होते हैं। इस प्रकार अवधिज्ञान का निरूपण हो गया। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र अवधिज्ञानी उत्कृष्ट तो द्रव्यतः सर्वमूर्त्तद्रव्याणि जानाति पश्यति, , क्षेत्रतस्त्वादेशेनासंख्येयं क्षेत्रम्, एवं कालमपि, भावतस्त्वनन्तान् भावानिति।तत्र ऋद्धिविशेष : a 'एषः' अवधिः 'व्यावर्ण्यते' गीयते, अतः तत्सामान्यात् शेषर्द्धयोऽपि वर्ण्यन्त इति गाथार्थः // 8 // ___ (वृत्ति-हिन्दी-) अवधिज्ञानी उत्कृष्टतया द्रव्य की अपेक्षा से समस्त मूर्त द्रव्यों को। जानता-देखता है, क्षेत्र की दृष्टि से असंख्येय क्षेत्र को जानता-देखता है, इसी तरह काल को भी, तथा भाव की दृष्टि से अनन्त भावों (पर्यायों) को जानता-देखता है। यहां इस अवधि को & ऋद्धिविशेष (के रूप में) कहा जाता है, वर्णित या उद्घोषित किया जाता है, इसलिए , cसामान्यतया अन्य ऋद्धियों की भी निरूपणा की जा रही है- यह गाथा का अर्थ पूर्ण . म. हुआ 1168 // - 272 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)cR990090@RO900 .

Loading...

Page Navigation
1 ... 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350