Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 325
________________ acacacacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 (लेकिन) उस संकल्प को बांए हाथ से (यूं ही) खींच लेता है, और (अविचलित हुए | c. ही) भोजन करने या अन्य कार्य में लिप्त रहता है, किन्तु वे (राजा) मधुमथन (वासुदेव) को , खींच नहीं पाते // 72 // किसी कुएं की मेड़ पर बैठे हुए चक्रवर्ती को बत्तीस हजार राजा सांकल से बांध कर समस्त बल लगाकर, खींचते हैं (तो भी वह अविचलित ही रहता है) 73 // (लेकिन) चक्रवर्ती बाएं हाथ से (यूं ही) खींच लेता है और भोजन या अन्य कार्य में लिप्त रहता है, किन्तु वे (राजा) चक्रवर्ती को नहीं खींच पाते74॥ a केशव (वासुदेव) का जितना बल होता है, उससे दुगुना बल चक्रवर्ती का होता है। " & उस (चक्रवर्ती) से भी अधिक बलवान एवं अपरिमित शक्ति के धारक जिनेन्द्र भगवान् होते : हैं 75 // & (हरिभद्रीय वृत्तिः) (आसां गमनिका-) इह वीर्यान्तरायकर्मक्षयोपशमविशेषाद्धलातिशयो वासुदेवस्य संप्रदर्श्यते-षोडश राजसहस्राणि 'सर्वबलेन' हस्त्यश्वरथपदातिसंकुलेन सह शृङ्खलानिबद्धं 'अंछंति' देशीवचनात् आकर्षन्ति वासुदेवम् 'अगडतटे' कूपतटे स्थितं सन्तम्, ततश्च गृहीत्वा, शृङ्खलामसौ वामहस्तेन 'अंछमाणाणं ति, आकर्षतां भुजीत विलिम्पेत वा अवज्ञया हृष्टः सन्, . मधुमथनं ते न शक्नुवन्ति, आक्रष्टुमिति वाक्यशेषः। (वृत्ति-हिन्दी-) उपर्युक्त गाथाओं की सुगम व्याख्या इस प्रकार है- वासुदेव के वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम-विशेष के कारण अतिशयित उत्कृष्ट बल होता है [शास्त्रों में , वासुदेव में बीस लाख 'अष्टापद' का बल होना माना गया है।] उसका निदर्शन इस प्रकार : ल है- सोलह हजार राजा, समस्त बल से अर्थात् हाथी-रथ-पैदल (सैन्य-बल) के साथ, & सांकल में बंधे वासुदेव को खींचते हैं। यहां गाथा में प्रयुक्त 'अंछंति' में 'अंछ' धातु देशी है, & जिसका अर्थ खींचना है। वे वासुदेव कुएं के तट (यानी मेंढ़) पर बैठे हुए रहते हैं। तब उस सांकल को वासुदेव बाएं हाथ से पकड़े रहते हैं, जबकि (सारे राजा) खींच रहे होते हैं, तब भी , 6 (वासुदेव उनकी इस क्रिया पर) मानों उनकी अवज्ञा कर रहे हों और 'हृष्ट' ही रहते हैं , 4 (अर्थात् वासुदेव के चेहरे पर थोड़ी-सी भी शिकन नहीं होती, भुकुटि नहीं तनतीं) और खाने " / (-पीने) या अपने कार्य में लिप्त रहते हैं (उनके थोड़ा-सा भी ध्यान अपने कार्य से विचलित | - 284 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 2322233333333333333333333333333333333333333330 333333333333333333333333333333.33333333333333

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