Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 322
________________ 200000000 223333333333333333333333333333333333333333 Racecacancance नियुक्ति गाथा-69-70 केवलज्ञान तो स्पष्ट रूप से एक महान् लब्धि है ही, इससे बढ़ कर और कोई लब्धि है ही & नहीं। मनुष्यक्षेत्रवर्ती ढाई द्वीप में स्थित जीवों के मनोगतपर्यायों के आधार पर उनके चित्रित अर्थों , का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने वाली लब्धि मनःपर्यायज्ञान लब्धि होती है। मनःपर्यायज्ञान लब्धि से , cs यहां विपुलमति मनःपर्यायज्ञान अभिप्रेत है, क्योंकि ऋजुमति का इसी गाथा में पृथक् ग्रहण किया ही है ca गया है। पूर्वधर यानी समस्त चौदह पूर्वो के धारक (या दशपूर्वधारक)। ये विशिष्ट ज्ञान के धारक होने से अनेक शक्तियों को भी अपने में समेटे रहते हैं। तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव -इनकी विशिष्ट , शक्ति होती है, जिसका आगे निरूपण भी किया जा रहा है। दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्ति (चतुर्थ अधिकार) तथा राजवार्तिक (3/36) आदि ग्रन्थों ल में कुछ अन्तर या विशेषता के साथ इन ऋद्धियों का वर्णन है, विस्तार से जानने के लिए वे ग्रन्थ & द्रष्टव्य हैं। & इसके अतिरिक्त विद्या और बुद्धि से सम्बन्धित अनेक लब्धियां हैं, जो योगाभ्यास से प्राप्त " & होती हैं। जैसे श्रुतज्ञानावरणीय एवं वीर्यान्तराय कर्म के प्रकर्ष क्षयोपशम से साधक को असाधारण " & महाप्रज्ञा -ऋद्धि प्राप्त होती है, जिसके प्रभाव से वह द्वादशांग और चतुर्दशपूर्व का विधिवत् अध्ययन , न होने पर भी बारह अंगों और चतुर्दशपूर्वो के ज्ञान का निरूपण कर सकता है। तथा उस महाप्राज्ञ . & श्रमण की बुद्धि गंभीर से गंभीर और कठिन से कठिन अर्थ का स्पष्ट विवेचन कर सकती है। कोई " विद्याधारी श्रमण विद्यालब्धि प्राप्त कर दस पूर्व तक पढ़ता है, कोई रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि महाविद्याओं से व अंगुष्ठप्रश्न आदि अल्पविद्याओं के जानकार हो जाते हैं, फिर वे किसी ऋद्धिमान के वश नहीं होते। कई साधक पढ़े हुए विषय के अतिरिक्त विषयों का प्रतिपादन एवं विश्लेषण करने में कुशल होते हैं। ce' उक्त विद्याधर-श्रमणों में से कइयों को बीज, कोष्ठ व पदानुसारी बुद्धि की लब्धि प्राप्त होती है। " & बीजबुद्धि के लब्धिधारी वे कहलाते हैं, जो ज्ञानावरणीयादि कर्मों के अतिशय क्षयोपशम से एक >> ca अर्थरूप बीज को सुन कर अनेक अर्थ वाले बहुत से बीजों को उसी तरह प्राप्त कर लेते हैं जिस तरह से एक किसान अच्छी तरह जोती हुई जमीन में वर्षा या सिंचाई के जल, सूर्य की धूप, हवा आदि के संयोग से एक बीज बो कर अनेक बीज प्राप्त कर लेता है। जैसे- कोष्ठागार (कोठार) में रखे हुए ca विविध धान्य एक दूसरे में मिल न जाएं, सड़ कर बिगड़ न जाएं, इस दृष्टि से कुशल बुद्धि वाला " किसान बहुत-सा धान्य कोठारों में अच्छी तरह संभाल कर सुरक्षित रखता है, वैसे ही दूसरे से सुन , & कर अवधारण किये हर श्रुत (शास्त्र) के अनेक अर्थों को या बार-बार आवृत्ति किये बिना ही विभिन्न : * अर्थों को भलीभांति याद रखता है, भूलता नहीं है, इस प्रकार मस्तिष्करूपी कोष्ठागार में रखा अर्थ " / सुरक्षित रखता है, वह कोष्ठबुद्धि कहलाता है। पदानुसारी बुद्धि वाले तीन प्रकार के होते हैं- अनुस्रोत, (r)(r)(r)(r)(r)(r)c@pec@@@@@ 281

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