Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 303
________________ -232323222322232233333333222222222222222222222 ca cace cace ca ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000| संख्यात पर्यायों को देख सकता है। देखता है, प्राप्त करता है, लाभ करता है -ये सब पर्याय - ही हैं। तथा जघन्यतया (कम से कम) द्विगुणित दो पर्यायों को, अर्थात् एक ही द्रव्य के (वर्ण, >> रस, गंध, स्पर्श -इन) चार पर्यायों को देखता है। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक द्रव्य के वर्ण, , गंध, रस व स्पर्श को ही देख पाता है, अनन्त पर्यायों को नहीं देख पाता। सामान्यतया चूंकि द्रव्य अनन्त होते हैं, इस दृष्टि से तो अनन्त पर्यायों को भी देखता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 64 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतं युगपज्ज्ञानदर्शनविभङ्गद्वारावयवार्थाभिधित्सयाऽऽह . (नियुक्तिः) सागारमणागारा, ओहिविभंगा जहण्णगा तुल्ला। उवरिमगेवेज्जेसु उ, परेण ओही असंखिज्जो // 65 // [संस्कृतच्छायाः- साकार-अनाकारौ अवधिविभौ जघन्यको तुल्यौ।उपरिम-वेयकेषु परेण अवधिः a असंख्येयः॥ (वृत्ति-हिन्दी-) अब, ज्ञान व दर्शन के विभंग द्वार के अन्तर्गत निरूपण करने हेतु 4 (आगे की गाथा) कह रहे हैं (65) (नियुक्ति-हिन्दी) साकार अवधि, अनाकार अवधि और विभंगावधि -ये उपरिवर्ती / ग्रैवेयक देवों तक तो जघन्यतः (समान) होते हैं, ऊपर (के देवलोकों) में. (क्षेत्रापेक्षया) असंख्येय योजन (प्रमाण) अवधि ही होता है (विभङ्गावधि नहीं होता)। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र यो विशेषग्राहकः स साकारः, सच ज्ञानमित्युच्यते।यः पुनः सामान्यग्राहकोऽवधिर्विभङ्गो वा सोऽनाकारः, स च दर्शनं गीयते।तत्र साकारानाकाराववधिविभङ्गो जघन्यको तुल्यावेव भवतः, सम्यग्दृष्टेरवधिः, मिथ्यादृष्टेस्तु स एव विभङ्गः। लोकपुरुषग्रीवासंस्थानीयानि अवेयकाणि विमानानि, उपरिमाणि च तानि ग्रैवेयकाणि चेति समासः।तुशब्दोऽपिशब्दस्यार्थे द्रष्टव्यः।भवनपतिदेवेभ्यः खल्वारभ्य उपरिमौवेयकेष्वपि 888888888888888888888888888888 - 26289c98c98c@m@cr(r)(r)(r)(r)(r).

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