Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 290
________________ Mananect नियुक्ति-गाथा-59 9000000000 | बार उत्पन्न हो, (वहां 33-33 सागर की आयु पूरी करे) उसकी अपेक्षा से अवधि की उत्कृष्ट स्थिति | ca छासठ सागरोपम है।दो जन्मों के मध्य जो मनुष्य जन्म लिया, उसके काल को जोड़ें तो समन काल >> कुछ अधिक छासठ सागरोपम का होगा। उक्त उत्कृष्ट अवस्थिति 'लब्धि-सामान्य' की दृष्टि से है। किन्तु विशेषद्रव्य से जुड़े उपयोग व लब्धि- दोनों की, या उपयोगयुक्त लब्धि की किसी द्रव्य व क्षेत्र में 4 अवस्थिति का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही है, और जघन्य काल एक समय का ही है। अन्तर्मुहूर्त से 4 अधिक किसी द्रव्य में उपयोग ठहर ही नहीं पाता और रहे तो कम से एक समय तक तो रहेगा ही। 22222222222222222222222222 222222 एक समय का जघन्य अवस्थिति काल मनुष्यों और तिर्यञ्चों में तब घटित होता है जब उनका अवधिज्ञान एक समय के बाद प्रतिपतित हो जाय या उपयोग हट जाय। देवों व नारकों में जब उनकी आयु के अंतिम समय में सम्यक्त्व प्राप्त हो तो उनका विभंगज्ञान अवधिज्ञान हो जाता है, तब भी एक समय वाला जघन्य काल संगत होता है। (हरिभद्रीय दृत्तिः) एवं तावदवस्थितद्वारमभिधाय इदानीं चलद्वाराभिघित्सयाऽऽह नियुक्तिः) दही वा हाणी वा,चउबिहा होइ खित्तकालाणं / दबेसु होइ दुविहा, छबिह पुण पज्जवे होइ॥५९॥ (संस्कृतच्छायाः-वृद्धि हानिर्वा चतुर्विधा भवति क्षेत्रकालयोः द्रव्येषु भवति द्विविधा षविधा पुनः . पर्यवे भवति। a . (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार अवस्थिति-द्वार का कथन करने के बाद, अब चल द्वार का कथन करने हेतु (आगे की गाथा) कह रहे हैं (नियुक्ति-अर्च-) (अवधिज्ञान का विषय होने वाले) क्षेत्र व काल में जो वृद्धि या : हानि होती है, वह चार प्रकार की होती है। द्रव्यों में होने वाली वृद्धि या हानि दो प्रकार की और पर्यायों में होने वाली वृद्धि या हानि छः प्रकार की होती है। (r)(r)(r)(r)(r)(r)ce@@ce@20p@cr@@ 249

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