________________ 222333333333333333333333333333333333333333333 Reaceae श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 92000000(हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र चलो ह्यवधिः वर्धमानः क्षीयमाणो वा भवति।सा च वृद्धिर्हानिर्वा , & चतुर्विधा भवति क्षेत्रकालयोः। तथा चाभ्यधायि परमगुरुणा- "असंखेज्जभागवुट्टी वा, संखेज्जभागवुढी वा संखेज्जगुणवुट्टी वा असंखेज्जगुणवुड्डी वा," [असंख्येयभागवृद्धिर्वा / संख्येयभागवृद्धिर्वा संख्येयगुणवृद्धिर्वा असंख्येयगुणवृद्धिर्वा] एवं हानिरपि / न तु, अनन्तभागवृद्धिरनन्तगुणवृद्धिर्वा / एवं हानिरपि, क्षेत्रकालयोरनन्तयोरदर्शनात्।तथा द्रव्येषु / भवति द्विधा वृद्धि निर्वा / कथम्? -अनन्तभागवृद्धिर्वा अनन्तगुणवृद्धिर्वा, एवं हानिरपि, , & द्रव्यानन्यादिति भावार्थः। ...तथा षड़िवधा 'पर्याये' इति जात्यपेक्षमेकवचनं पर्यायेषु भवति, वृद्धि हानिर्देति - 8 वर्त्तते, पर्यायानन्त्यात् / कथम्? -अनन्तभागवृद्धिः असंख्येयभागवृद्धिः संख्येयभागवृद्धिः - संख्येयगुणवृद्धिः असंख्येयगुणवृद्धिः अनन्तगुणवृद्धिरिति, एवं हानिरपि। a (वृत्ति-हिन्दी-) चल अवधिज्ञान या तो वर्द्धमान होता है या क्षीयमाण। यह वृद्धि या " व हानि (क्षीणता) क्षेत्र व काल में होती है और उसके चार-चार प्रकार हैं। परमगुरु (तीर्थंकर - देव) का कथन भी इस प्रकार है- 'असंख्येय भाग वृद्धि या संख्येय भागवृद्धि या , & संख्येयगुणवृद्धि या असंख्येय गुण-वृद्धि / ' 'इसी प्रकार हानि भी (असंख्येयभाग-वृद्धि, संख्येय गुणवृद्धि या अनन्त गुण-वृद्धि नहीं होती, और इसी प्रकार अनन्त भागहानि या , CM अनन्तगुण हानि भी नहीं होती, इसका कारण यह है कि क्षेत्र व काल की अनन्तता , ca दृष्टिगोचर नहीं होती (अर्थात् अवधिज्ञानी के लिए अनन्त व काल दृष्टिगम्य नहीं होते)। इसी " & तरह द्रव्यों में (भी) वृद्धि या हानि दो दो प्रकार की होती है। कैसे? (इस प्रकार होती है-) . & अनन्त भागवृद्धि या अनन्त गुण-वृद्धि, इसी प्रकार अनन्त भाग हानि या अनन्त गुण-हानि , & होती है, क्योंकि द्रव्य अनन्त हैं- यह भाव है। और, पर्याय में छः-छः प्रकार की होती है। पर्याय' में एकवचन 'जाति' की अपेक्षा , से है (वस्तुतः पर्याय अनन्त होते हैं, इसलिए 'पर्यायों में कहना चाहिए था, किन्तु एकत्व , बुद्धि से एकवचन है)। वाक्य में ‘हानि या बुद्धि' इन दोनों पदों की भी अनुवृत्ति करणीय है। . 4 (अतः पूर्ण वाक्यार्थ होगा- 'पर्याय में छः छः प्रकार की हानि या बुद्धि होती है')। (पर्यायों में , हानि या वृद्धि के छः छः प्रकारों के होने में) कारण यह है कि (द्रव्य की तरह) पर्याय भी 250 @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ -