Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 292
________________ RRRRRRRece හ හ හ හ හ හ හ හ 33333333333333333333 333333 नियुक्ति गाथा-59 अनन्त होते हैं। यह हानि-वृद्धि किस प्रकार से होगी? (इस प्रकार से होगी-) (1) अनन्त & भाग वृद्धि (2) असंख्येय भागवृद्धि, (3) संख्येय भाग वृद्धि, (4) संख्येय गुण-वृद्धि, (5) >> असंख्येय गुण-वृद्धि और (6) अनन्त गुणवृद्धि / इसी प्रकार हानि भी (छः प्रकार की) , होती है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह- क्षेत्रस्यासंख्येयभागादिवृद्धौ तदाधेयद्रव्याणामपि तन्निबन्धनत्वादसंख्येयभागादिवृद्धिरेवास्तु, तथा द्रव्यस्यानन्तभागादिवृद्धौ सत्यां तत्पर्यायाणामपि , अनन्तभागादिवृद्धिरिति षट्स्थानकमनुपपन्नमिति। अत्रोच्यते, सामान्यन्यायमङ्गीकृत्य : इदमित्थमेवायदा क्षेत्रानुवृत्त्या पुद्गलाः परिसंख्यायन्ते, पुद्गलानुवृत्त्या च तत्पर्यायाः, न चात्रैवम् / कथम्? यस्मात्स्वक्षेत्रादनन्तगुणाः पुद्गलाः, तेभ्योऽपि पर्याया इति, अतो यस्य / ल ययैवोक्ता वृद्धिर्हानिर्वा तस्य तथैवाविरुद्धेति, प्रतिनियतविषयत्वात्, विचित्रावधिनिबन्धनाच्चेति // व गाथार्थः॥१९॥ (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) क्षेत्र की असंख्येय भाग आदि की वृद्धि होने पर, उसके , ce रहने वाले (आधेय) द्रव्यों की भी असंख्येय भाग आदि वृद्धि हो ही जाती है (अर्थात् क्षेत्र की . असंख्येय भाग आदि की वृद्धि में ही द्रव्य की वृद्धि अन्तर्निहित है, अतः पृथक् द्रव्य की , & असंख्येय भाग आदि की वृद्धि नहीं मानी जाय), इसी प्रकार द्रव्य की अनन्त भाग आदि की : वृद्धि में उसके पर्यायों की भी अनन्तभागवृद्धि (अन्तर्भूत) है, अतः 'षट्स्थान' (पृथक्-पृथक् , छः छः प्रकारों) का कथन युक्तियुक्त नहीं है। इसका समाधान यह है- सामान्यतया कथन के रूप में तो यह (छः छः प्रकार का पूर्वोक्त कथन) ही यथार्थ है। क्षेत्र (की हानि-वृद्धि) के 22 4 अनुसार पुद्गलों की हानि-वृद्धि का कथन और पुद्गलों (की हानि-वृद्धि) के अनुसार उसके , ca पर्यायों की हानि-वृद्धि का कथन जो किया जा रहा है, वैसा अर्थात् (वैसी दृष्टि) यहां नहीं है। " कैसे? क्योंकि अपने क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गल अनन्त होते हैं, और उनसे भी अनन्त उनके " पर्याय होते हैं, अतः जिस प्रकार वृद्धि या हानि (छः छः प्रकार की) बताई गई है, वही , अविरुद्ध है, क्योंकि (प्रत्येक) हानि या वृद्धि का विषय नियत है और उसमें अवधि की , (अवधि ज्ञानावरण-क्षयोपशम-जनित) विचित्रता कारण है। यह माथा का अर्थ पूर्ण हुआ 59 233823.33 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)8000 251

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