Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 277
________________ OR OR OR CROR OR OR श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0909000mm (हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतमयमेवावधिः येषां सर्वोत्कृष्टादिभेदभिन्नो भवति, तान्प्रदर्शयन्नाह (नियुक्तिः) उक्कोसो मणुएसुं, मणुस्सतिरिएसुय जहण्णो य। उक्कोस लोगमित्तो, पडिवाइ परं अपडिवाई॥५३॥ [संस्कृतच्छायाः- उत्कृष्टो मनुजेषु मनुष्यतिर्यक्षु च जघन्यः। उत्कृष्टो लोकमात्रः, प्रतिपाती परम् अप्रतिपाती।] __(वृत्ति-हिन्दी-) अब, इसी अवधि के सर्वोत्कृष्ट आदि भेद किन-किन जीवों में होते . cm हैं- उसका निदर्शन कर रहे हैं (53) -222222323222333333333333333333333333333323232 DS (नियुक्ति-अर्थ-) मनुष्यों में (ही) सर्वोत्कृष्ट अवधिज्ञान होता है और मनुष्य व & तिर्यञ्चों में ही जघन्य (भी) होता है। उत्कृष्ट अवधिज्ञान (सम्पूर्ण) लोकप्रमाण होता है और वह व प्रतिपाती होता है, उससे आगे (जानने वाला अवधिज्ञान) अप्रतिपाती होता है। & (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतश्चोत्कृष्टोऽवधिः मनुष्येषु एव, नामरादिषु।। तथा मनुष्याश्च तिर्यश्चश्च मनुष्यतिर्यश्चः, तेषु मनुष्यतिर्यक्षु च जघन्यः।चशब्द एवकारार्थः, 1 ca तस्य चैवं प्रयोगः- मनुष्यतिर्यक्ष्वेव जघन्यो, न नारकसुरेषु। तत्र उत्कृष्टो लोकमात्र एव. अवधिः / प्रतिपतितुं शीलमस्येति प्रतिपाती।ततः परमप्रतिपात्येव।लोकमात्रादाववधिमाने , प्रतिपादिते प्रसङ्गतः प्रतिपात्यप्रतिपातिस्वरूपाभिधानमदोषायैवेति गाथार्थः // 13 // (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा से उत्कृष्ट अवधिज्ञान : ( मनुष्यों में ही होता है, असुर आदि में नहीं। तथा जघन्य (भी) मनुष्य और तिर्यञ्च, इनमें (ही) : होता है। 'च' शब्द का 'ही' अर्थ है। उसका प्रयोग इस प्रकार (वाक्यार्थ में) होगा- मनुष्य व तिर्यञ्चों में ही जघन्य अवधिज्ञान होता है, नारकियों व देवों में नहीं। जो उत्कृष्ट अवधिज्ञान & है, वह लोकमात्र ही होता है और वह प्रतिपाती, यानी पतनशील होता है। उससे आगे (जानने वाला अवधि ज्ञान) अप्रतिपाती ही होता है। यहां अवधि-क्षेत्र को लोक-परिमित आदि / cबताया गया है, उसमें प्रासङ्गिक होने के कारण ही अवधिज्ञान के प्रतिपाती व अप्रतिपाती - स्वरूपों का कथन किया गया है, अतः कोई दोष नहीं है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 53|| - 2368 08898@@@@2008.

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