________________ -ReaRREnce नियुक्ति गाथा-22 9000000000 (हरिभद्रीय वृत्तिः) बुद्धिगुणैरष्टभिरित्युक्तम्, ते चामी (नियुक्तिः) सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइयईहए वावि। तत्तो अपोहए या, धारेइ करेइ वा सम्मं // 22 // [संस्कृतच्छाया:-शुश्रूषते प्रतिपृच्छति शृणोति गृह्णाति चेहते चापि।ततोऽपोहते वा धारयति करोति & वा सम्यक् / (वृत्ति-हिन्दी-) बुद्धि के आठ गुणों का निर्देश किया गया था। वे बुद्धि-गुण इस " & प्रकार है (22) 23333333333333 33333333 (नियुक्ति-अर्थ-) (बुद्धि के आठ गुण इस प्रकार हैं-) (1) शुश्रूषा (श्रवण-इच्छा), . 4 (2) प्रतिपृच्छा. (पुनः पूछना), (3) सुनना, (4) ग्रहण करना, (5) ईहा (पर्यालोचन), (6) , अपोह (निश्चय तक पहुंचना), (7) धारणा, और (8) सम्यक्करण (सम्यक् अनुष्ठान)। , व (हरिभद्रीय वृत्तिः) &.. (व्याख्या-) विनययुक्तो गुरुमुखात् श्रोतुमिच्छति शुश्रूषति।पुनः पृच्छति प्रतिपृच्छति, तच्छुतमशङ्कितं करोतीति भावार्थः। पुनः कथितं तच्छृणोति, श्रुत्वा गृह्णाति, गृहीत्वा चेहते, . पर्यालोचयति-किमिदमित्यं उत अन्यथेति।चशब्दः समुच्चयार्थः, अपिशब्दात् पर्यालोचयन् , किञ्चित् स्वबुद्ध्याऽपि उत्प्रेक्षते। ततः' तदनन्तरम् 'अपोहते च' एवमेतत् यदादिष्टमाचार्येणेति पुनस्तमर्थमागृहीतं धारयति, करोति च सम्यक् तदुक्तमनुष्ठानमिति, तदुक्तानुष्ठानमपि च . 4 श्रुतप्राप्तिहेतुर्भवत्येव, तदावरणकर्मक्षयोपशमादिनिमित्तत्वात्तस्येति।अथवा यद्यदाज्ञापयतिगुरु * तत् सम्यगनुग्रहं मन्यमानः श्रोतुमिच्छति शुश्रूषति, पूर्वसंदिष्टश्च सर्वकार्याणि कुर्वन् पुनः पृच्छति // के प्रतिपृच्छति, पुनरादिष्टः तत् सम्यक् शृणोति, शेषं पूर्ववद् -इति गाथार्थःR२॥ (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) विनययुक्त (शिष्य) गुरु-मुख से (तत्त्वज्ञान का) श्रवण " a करना चाहता है, प्रतिपृच्छा (पुनः प्रश्न) करता है- अर्थात् जो (गुरु से) सुना, उसमें होने वाली शंकाओं का निराकरण करता है। पुनः, गुरु जो कहता है, उसे सुनता है, सुन कर ग्रहण करता है, ग्रहण कर ईहा- पर्यालोचना करता है- कि यह ऐसा ही है या अन्य रूप से - 80ck@ @ @ @ @@@9890880900 163