________________ 222222222233333333322222222222222223333333322 -aaaaaaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000 (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) सूत्र का जो अर्थ होता है, वह सूत्रार्थ है। जिस अनुयोग ca (व्याख्यान) में मात्र सूत्रार्थ का ही प्रतिपादन होता है, वह 'सूत्रार्थ' अनुयोग कहा जाता है। " & अथवा मात्र सूत्रार्थ के प्रतिपादन की प्रधानता वाला अनुयोग 'सूत्रार्थ' है। 'खलु' यह शब्द : CM 'एव' (ही) अर्थ को व्यक्त कर रहा है, वह यहां 'अवधारण' करता है। तात्पर्य यह है कि गुरु, द्वारा प्रथम जो अनुयोग (व्याख्यान) करना चाहिए, वह मात्र सूत्रार्थ का कथन (अर्थात् यहीं , c तक सीमित) हो, प्राथमिक स्तर के शिष्यों को मतिसंमोह (अस्पष्टता, व्यामोह) न हो , ca (इसलिए सबसे पहले मात्र सूत्रार्थ कथन ही किया जाता है, पहले ही प्रासंगिक या शिष्य के 7 के लिए पूर्णतः अज्ञात विषय पर आधारित व्याख्यान प्रारम्भ कर देने पर शिष्य को व्यामोह होने से की संभावना है)। सूत्रस्पर्शी नियुक्ति के साथ सूत्रार्थ का कथन करना चाहिए -इस प्रकार : के द्वितीय अनुयोग का कथन जिनेन्द्र तथा चतुर्दशपूर्वधारी आचार्यों ने किया है। तीसरा & अनुयोग- 'निरवशेष' (सूत्रार्थरूप श्रुत से सम्बद्ध) होना चाहिए, अर्थात् सूत्रार्थ से जुड़े / प्रासंगिक या आनुषंगिक (परम्परा से सम्बद्ध) विषयों का भी कथन हो, इस प्रकार कुछ ल और कहना शेष न रह जाय (-इस रूप में 'निरवशेष' व्याख्यान हो)। यह जो पूर्वोक्त , a विधियां या प्रकार (अनुयोग के) बताए गये हैं, उन्हें जिनेन्द्र आदि ने कहा है। किस विषय में " a (ये विधियां बताई गई हैं)? (उत्तर-) 'अनुयोग' में, अर्थात् 'अनुयोग' के विषय में। अनुयोग , & का अर्थ है- अभिधेय (वाच्य अर्थ) के साथ अनुकूल योजना, अर्थात् सूत्रार्थ की (सम्यक्) , & व्याख्या / यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 24 // विशेषार्थ प्रथम वाचना में सूत्र और अर्थ कहे। दूसरी में सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति का कथन करे। तीसरी " वाचना में सर्व प्रकार नय-निक्षेप आदि से पूर्ण व्याख्या करे। इस तरह अनुयोग की विधि शास्त्रकारों , ने प्रतिपादित की है। ___आचार्य, उपाध्याय या बहुश्रुत गुरु के लिए भी आवश्यक है कि वह शिष्य को सर्वप्रथम सूत्र , का शुद्ध उच्चारण और अर्थ सिखाए। तत्पश्चात् उस आगम के शब्दों की सूत्रस्पर्शी नियुक्ति बताए। तीसरी बार पुनः उसी सूत्र को वृत्ति-भाष्य, उत्सर्ग-अपवाद, और निश्चय-व्यवहार, इन सबके आशय : CR का नय, निक्षेप, प्रमाण और अनुयोगद्वार आदि विधि से व्याख्या सहित समझाए। इस क्रम से, अध्यापन करने पर गुरु शिष्य को श्रुतपारंगत बना सकता है। -833333333333333333333333333. - 168 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)