________________ -RRRRRRRRR 9000000000 काल 333333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-20 द्रव्य की दृष्टि से- एक पुरुष की अपेक्षा श्रुत के सादि-सपर्यवसित होने के अनेक हेतु हो ca सकते हैं। जिनभद्रगणि ने इसके पांच हेतु बतलाए हैं, नंदी चूर्णिकार और टीकाकारों ने भी उनका , M अनुसरण किया है 1. मिथ्यादर्शन में गमन, 2. भवान्तर में गमन, 3. केवलज्ञान की उत्पत्ति, 4. रोग, 5... प्रमाद अथवा विस्मृति। क्षेत्र की दृष्टि से- महाविदेह में श्रुत की निरंतरता रहती है, उसकी अपेक्षा द्वादशाङ्ग अनादि ca अपर्यवसित हैं। - काल की अपेक्षा महाविदेह में उत्सर्पिणी अवसर्पिणी का विभाग नहीं ce होता। इस अपेक्षा से नोउत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी में द्वादशाङ्ग अनादि अपर्यवसित है। 4 भाव की दृष्टि से- भाव की अपेक्षा भगवान् महावीर ने द्वादशाङ्ग के अर्थ का प्रज्ञापन जिस " & काल- पूर्वाह्न, अपराह्न, दिन, रात में किया, वह द्वादशाङ्ग का आदि है। और प्रवचन की सम्पन्नता , का काल उसका पर्यवसान है। प्रज्ञापनीय भाव की अपेक्षा से भी द्वादशाङ्ग सादि सपर्यवसित होता है। प्रज्ञापक की अपेक्षा द्वादशाङ्ग सादि सपर्यवसित होता है। जिनभद्रगणि ने उसके चार हेतु बतलाए हैं- 1. श्रुत का उपयोग, 2. स्वर, ध्वनि, 3... प्रयत्न- तालु आदि का व्यापार, 4. आसन / ये प्रज्ञापक के भाव- पर्याय बदलते रहते हैं। इस व परिवर्तन की अपेक्षा द्वादशाङ्ग को सादि-सपर्यवसित कहा जा सकता है। व्याख्या ग्रन्थों में इनका ही " & अनुसरण किया गया है। इसी तरह, क्षायोपशमिक भाव नित्य है। उसकी अपेक्षा द्वादशाङ्ग अनादि अपर्यवसित है। अंगप्रविष्ट व अनंगप्रविष्ट-जिनभद्रगणि ने विशेषावश्यक भाष्य में अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य के भेदकारक हेतु बतलाए हैं-. अङ्गप्रविष्ट अङ्गबाह्य 1. अङ्गप्रविष्ट आगम गणधर के द्वारा रचित है। 1. अङ्गबाह्य आगम स्थविर के द्वारा रचित है। 2. गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने पर तीर्थङ्कर 2. प्रश्न पूछे बिना तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित . द्वारा प्रतिपादित होता है। होता है। 3. शाश्वत सत्यों से संबंधित होता है और 3. चल होता है- तात्कालिक या सामयिक " सुदीर्घकालीन होता है। होता है। (r)90@ @ @cr@ @cr@ @ @ @ @ @ @ 159