________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 -cace cRcecacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 सूत्रेऽप्युक्तम्- "अणंता गमा अणंता पज्जवा" (अनन्ताः गमाः, अनन्ताः पर्यायाः)।अमुमेवार्थ / ce चेतसि आरोप्य आह- 'एतावत्यः' ।इयत्परिमाणाः प्रवृत्तिनिमित्तत्वात् / इत्येवं सर्वप्रकृतयः / & श्रुतज्ञाने भवन्ति ज्ञातव्या इति गाथार्थः // 17 // (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) अकार आदि तो संख्येय (ही) हैं, फिर उनके संयोग , 8 अनन्त कैसे (सम्भव) हैं? इसका समाधान कह रहे हैं- उन अक्षरों (एवं अक्षर-संयोगों) के , CM जो अभिधेय (वाच्य) अर्थ (पदार्थ) पुद्गलास्तिकाय आदि हैं, वे भिन्न-भिन्न हैं और अनन्त हैं, . और अपने अभिधेय पदार्थ की भिन्नता के कारण उनके वाचक शब्दों (पद आदि) में भी भेद 8 सिद्ध होता है, अतः अनन्त संयोग की सिद्धि हो जाती है। अभिधेय सम्बन्धी भेदों की 8 अनन्तता का स्पष्टीकरण इस प्रकार है। जैसे, (एक ही) परमाणु द्विप्रदेशी (त्रिप्रदेशी आदि) a से लेकर अनन्तप्रदेशी भी होता है, आदि-आदि। इसके अतिरिक्त, एक ही वस्तु में अनेक * अभिधानों (वाचक शब्दों) की प्रवृत्ति होती देखी जाती है, और एक ही अभिधेय के भिन्न भिन्न धर्म होते हैं। जैसे- परमाणु (को) निरंश, निर्भेद, निरवयव आदि (रूप में कहना)। , 6 उक्त सभी ध्वनियां सर्वथा एक ही अभिधेय की वाचक नहीं होतीं, क्योंकि सभी शब्दों की , प्रवृत्ति में (व्यवहार-योग्य होने में) भिन्न-भिन्न निमित्त होते हैं। इसी प्रकार, सभी द्रव्यों, और उनके पर्यायों के विषय में समझ लेना चाहिए। सूत्र (आगम) (नन्दीवृत्ति) में भी कहा गया है- "अनन्त 'गम'(अर्थगम, अर्थ-परिच्छेद) और अनन्त पर्याय होते हैं'। इसी अर्थ a (तात्पर्य) को मन में रखकर (गाथा में) कहा गया है कि प्रवृत्ति-निमित्त रूप में इतने (एतावत्यः) परिमाण (संख्या) वाली प्रकृतियां होती हैं। इस तरह श्रुतज्ञान के अन्तर्गत समस्त प्रकृतियों का आकलन, ज्ञान करना चाहिए। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 17 // व विशेषार्थ अ, इ, उ, ऋ -इनमें से प्रत्येक के 18-18 भेद इस प्रकार हैं (अ) ह्रस्व दीर्घ प्लुत उदात्त अनुदात्त स्वरित - 144 @c@mecRBOOR@Recr(r)(r)(r)(r)(r)(r)