________________ cacaaReacence नियुक्ति-गाथा-17 90000000900 2222222233333333333333333323 _ [17] (नियुक्ति-अर्थ-) लोक में प्रत्येक अक्षर (के जितने भेद) हैं, और जितने (प्रकार के) " ca अक्षर-संयोग हैं, श्रुतज्ञान की उतनी ही प्रकृतियां हैं- ऐसा जानना चाहिए। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) एकमेकं प्रति प्रत्येकम्, अक्षराण्यकारादीनि अनेकभेदानि।यथा अकारः // * सानुनासिको निरनुनासिकश्च।पुनरेकैकस्त्रिधा-हस्वः दीर्घः प्लुतश्च ।पुनरेकैकस्त्रिधैव-उदात्तः, . & अनुदात्तः, स्वरितश्च।इत्येवमकारः अष्टादशभेदः इत्येवमन्येष्वपि कारादिषु यथासंभवं भेदजालं , वक्तव्यमिति।तथा अक्षराणां संयोगा अक्षरसंयोगाः, संयोगाश्च यादयः यावन्तो लोके यथा 'घटपट' इति, 'व्याघ्रहस्ती' इत्येवमादयः एते चानन्ता इति।तत्रापि एकैकः अनन्तपर्यायः, स्वपरपर्यायापेक्षया इति। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) 'प्रत्येक' का अर्थ है- एक-एक अक्षर, अक्षर अकार : 4 आदि हैं, उन (में से प्रत्येक) के अनेक भेद हैं। जैसे, अकार सानुनासिक और निरनुनासिक 1 रूप (से दो प्रकार का) है। फिर उनमें से भी प्रत्येक के तीन-तीन भेद हैं- ह्रस्व, दीर्घ और " a प्लुत। फिर इनमें से भी प्रत्येक के तीन-तीन भेद हैं- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित / इस " प्रकार (एक) अकार के अठारह भेद होते हैं। इसी तरह, अन्य (अक्षरों, स्वरों, जैसे) इकार , आदि के भी यथासम्भव भेद-प्रभेदों का कथन करना चाहिए। अक्षरों के संयोग (अक्षरसंयोग) भी दो अक्षरों के (एवं तीन अक्षरों के) आदि-आदि जितने भी लोक में (व्यवहृत) हैं, जैसे घट-पट, व्याघ्र-हस्ती इत्यादि, वे भी अनन्त (संख्या में) हैं। उनमें भी स्व-पर पर्यायों की अपेक्षा से प्रत्येक के पर्याय अनन्त होते हैं। & (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-संख्येयानाम् अकारादीनां कथं पुनरनन्ताः संयोगा इति।अत्रोच्यते।अभिधेयस्य : पुद्गलास्तिकायादेरनन्तत्वात् भिन्नत्वाच्च, अभिधेयभेदे च अभिधानभेदसिद्ध्या / अनन्तसंयोगसिद्धिरिति। अभिधेयभेदानन्त्यं च यथा- परमाणुः, द्विप्रदेशिको, यावद् , . अनन्तप्रदेशिक इत्यादि।तथैकत्रापि च अनेकाभिधानप्रवृत्तेः अभिधेयधर्मभेदाः यथा-परमाणुः, . निरंशः, निष्प्रदेशः, निर्भेदः, निरवयव इत्यादि।न चैते सर्वथैकाभिधेयवाचका ध्वनय इति, . सर्वशब्दानां भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तत्वात् / इत्येवं सर्वद्रव्यपर्यायेषु आयोजनीयमिति। तथा च - 80@ce@ @ce@ @ce@ @ce@9890@ca@908 143