________________ A RRRRRRRece ස හ හ හ හ හ හ හ හ ***** 441444444444444 नियुक्ति गाथा-7 समय, यानी) एक-एक समय की अपेक्षा प्रत्येक अनन्तरभावी समय ही एकान्तर (समय) / & है- यह तात्पर्य है। यहां तक गाथा का समुदित अर्थ किया गया है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) अत्र कश्चिदाह- ननु कायिकेनैव गृह्णातीत्येतद् युक्तम्, तस्यात्मव्यापाररूपत्वात्, निसृजति तु कथं वाचिकेन?, को वाऽयं वाग्योग इति। किं वागेव व्यापारापन्ना, आहोश्वित् तद्विसर्गहतुः कायसंरम्भ इति?, यदि पूर्वो विकल्पः, स खल्वयुक्तः, तस्या योगत्वानुपपत्तेः, तथा च न वाक्केवला जीवव्यापारः, तस्याः पुद्गलमात्रपरिणामरूपत्वात्, रसादिवत्, " योगश्चात्मनः शरीरवतो व्यापार इति, न च तया भाषया निसृज्यते, किन्तु सैव निसृज्यत इत्युक्तम्। . . अथ द्वितीयः पक्षः, ततः स कायव्यापार एवेतिकृत्वा कायिकेनैव निसृजतीत्यापन्नम्, CM अनिष्टं चैतत् इति।अत्रोच्यते, न, अभिप्रायापरिज्ञानात्। a (वृत्ति-हिन्दी-) यहां किसी ने शंका प्रस्तुत की- कायिक योग से ही ग्रहण करता है- यह (कहना) तो युक्तियुक्त है क्योंकि वह (योग) आत्म-व्यापार रूप है। किन्तु वाचिक ca (योग) से उत्सर्जन करता है -ऐसा कैसे? और फिर यह वाचिक योग है क्या? क्या वाणी ही . ca व्यापारात्मक होती है या कायिक व्यापार ही उक्त उत्सर्जन का कारण होता है? यदि प्रथम a विकल्प मानते हैं तो वह युक्तियुक्त नहीं, क्योंकि वाणी का 'योग' रूप अनुपपन्न (असंगत) व है। और केवल वाणी को जीव-व्यापार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह (वाणी) रस आदि की तरह पौगलिक है, जब कि योग तो शरीरधारी-आत्मा का व्यापार होता है। इसीलिए a (पहले) यह कहा गया है कि वह (भाषा ही) उत्सृष्ट (मुक्त) होती है, ऐसा नहीं कहा गया कि उस (शब्द-द्रव्य समूह रूप) वाणी से भाषा निसृष्ट होती है। यदि दूसरा पक्ष मानते हैं तो इसका अर्थ यह होगा कि वाचिक योग कायिक व्यापार ही है, इसलिए कायिक व्यापार से ही (वक्ता भाषा-द्रव्यों को) छोड़ता है, किन्तु यह (किसी , प्रकार) अभीष्ट नहीं है (क्योंकि गाथा में स्पष्ट कहा जा रहा है कि 'वाचिक योग से ही M उत्सर्जन किया जाता है')। अब (उपर्युक्त प्रश्नों का) उत्तर दे रहे हैं- आपका आक्षेप * युक्तियुक्त नहीं, क्योंकि आपने हमारे अभिप्राय का नहीं समझा है। 22322333222322333333 89@ce@00c88999R89@ce@989nece@ @ 77