________________ -200332222222233333333302322222222222222222222 aaaaaaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 20000mmविशेषार्थ 'नत्थि नएहि विहूणो सुत्तं अत्थो व जिणमए किंचि'- अर्थात् जिन-मत में कोई भी सूत्र व . a अर्थ ऐसा नहीं है जो 'नयों' से रहित हो। इस दृष्टि से यहां कर्ता के प्रयोजन पर विचार किया गया है। कर्ता के प्रयोजन का विचार हो तो यह भी प्रश्न उठ जाता है कि शास्त्र का कोई कर्ता है भी क्या? क्योंकि आगम तो नित्य है। आगम की नित्यता को इस तरह भी स्पष्ट समझ सकते हैं- 'आगम' के / a अभिधेय/वाच्य जीवादि तत्त्व सर्वथा व सर्वदा नित्य हैं, और विदेह क्षेत्र में सर्वदा सूत्र/आगम का , क सद्भाव रहता ही है, इसलिए समस्त क्षेत्र की अपेक्षा से 'श्रुतवान्' आत्माओं का कभी अभाव नहीं " होता। वृत्तिकार ने पर्यायास्तिक नय की दृष्टि से आगम की अनित्यता भी प्रतिपादित की है। नन्दी सूत्र (सू. 78) में भी व्युच्छित्तिनय (पर्यायार्थिक) से श्रुत को सादि-सान्त, तथा अव्युच्छित्तिनय , a (द्रव्यास्तिक) से अनादि-अनन्त बताया गया है। इस तरह शास्त्रादि का कथंचित् कर्तृत्व संगत हो, जाता है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) a तत्र सूत्रकर्तुः परमपर्गप्राप्तिः अपरं सत्त्वानुग्रहः, तदर्थप्रतिपादयितुः किं प्रयोजनमिति . * चेत्, न किश्चित्, कृतकृत्यत्वात् / प्रयोजनमन्तरेणार्थप्रतिपादनप्रयासोऽयुक्तः इति चेत्, न, , तस्य तीर्थकरबाम-गोत्रविपाकित्वात् / वक्ष्यति च- "तं च कहं वेइज्जइ?, अगिलाए : धम्मदेसणादीहि" इत्यादिना। (वृत्ति-हिन्दी-) सूत्रकर्ता का परम प्रयोजन है- अपवर्ग/मोक्ष की प्राप्ति। और . a (सूत्रकर्ता का) अपर (पारम्परिक) प्रयोजन है- सत्त्वों/प्राणियों के प्रति अनुग्रह / (शंका-): सूत्र के अर्थ का प्रतिपादन करने वाले (तीर्थंकर आदि) का क्या प्रयोजन होता है? (समाधान-) न कोई भी प्रयोजन नहीं होता, क्योंकि वह कृतकृत्य होता है। (शंका-) यदि वह कृतकृत्य है & और किसी प्रयोजन की पूर्ति अवशिष्ट नहीं रह जाती, तो किसी प्रयोजन के बिना, तीर्थंकर केवली द्वारा अर्थ के प्रतिपादन का औचित्य ही नहीं रहेगा? (समाधान-) वह प्रयास * 'तीर्थंकर नाम गोत्र' कर्म के विपाक-स्वरूप होता है। (नियुक्तिकार द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ की गाथा-185 में) आगे कहा भी गया है- उस (तीर्थंकर नाम कर्म) का किस प्रकार वेदन किया जाता है? उत्तर है- अग्लानता-पूर्वक धर्म-देशना आदि द्वारा उसका वेदन किया जाता है है," इत्यादि। (r)Rece@ @ @ @ce@ @ce@9999@N000