________________ * RROR.90 2200 ( RROR आ. हरिभद्र का समय आ. हरिभद्र के समय के सम्बन्ध में विद्वानों में ऐकमत्य नहीं है। परम्परागत विद्वद्वर्ग उनका ) CM स्वर्गवास ई. 527 में मानता है। प्रो. हर्मन जैकोबी तथा प्रो. के. बी. अभ्यंकर के अनुसार इनका समय : वि. सं. 800-950 है तो पं. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य के मत में ई. 720-810 है। किन्तु मुनि जिनविजय / जी ने अनेक युक्तिसंगत प्रमाणों के आधार पर इनका समय ई. 700-770 सिद्ध किया है। अतः / सामान्यतः इन्हें ई. 8वीं शती का माना जा सकता है। आचार्य हरिभद्र द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार है जैन आगमों पर व्याख्या के रूप में रचित ग्रन्थ- अनुयोगद्वार वृत्ति, ओघनियुक्ति-टीका, , दशवैकालिक वृत्ति, नन्दी वृत्ति, प्रज्ञापना टीका, पिण्डनियुक्ति-वृत्ति, जीवाभिगम वृत्ति, क्षेत्रसमासवृत्ति, जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति-टीका, आवश्यकनियुक्ति-वृत्ति आदि। सिद्धान्त-आचार आदि के ग्रन्थ- धर्मसंग्रहणी, पंचवस्तुक, पंचाशक, श्रावकप्रज्ञप्ति, सम्बोधप्रकरण, सम्यक्त्व-सप्तति, लोकतत्त्वनिर्णय, षोडशक प्रकरण, धर्मबिन्दु आदि। जैन न्याय-दर्शन के ग्रन्थः- अनेकान्तजयपताका, षड्दर्शनसमुच्चय, शास्त्रवार्तासमुच्चय, ( सर्वज्ञसिद्धि आदि। जैन अध्यात्म-योग के ग्रन्थ- योगदृष्टिसमुच्चय, योगबिन्दु, योगशतक, योगविंशिका आदि . कथा-साहित्य ग्रन्थ- धूर्ताख्यान, समराइच्चकहा आदि। स्तुतिपरक ग्रन्थ- महादेवाष्टक, संसारदावानल-स्तुति आदि। आवश्यक-नियुक्ति पर आचार्य हरिभद्र कृत वृत्ति आचार्य हरिभद्र ने आवश्यक सूत्र पर तो नहीं, किन्तु आवश्यक नियुक्ति पर एक वृत्ति लिखी - है। इसमें आवश्यक चूर्णि का अनुसरण न करते हुए स्वतंत्र रूप से विषय-विवेचना की गई है। इसी ( वृत्ति में यह भी संकेत मिलता है कि आचार्य हरिभद्र ने आवश्यकसूत्र पर एक बृहत् टीका भी लिखी थी, किन्तु यह अनुपलब्ध है। नियुक्ति के पाठान्तरों का भी इसमें कहीं-कहीं निर्देश कि II गया है। यह वृत्ति संस्कृत में है, किन्तु दृष्टान्त व कथानक प्राकृत में ही दिये गये हैं। इस वृत्ति का प्रमाण 22 हजार श्लोक माना जाता है। BROSAROORGBROORB0RROR XI