Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 9
________________ प्रतिपादन जिम पाण्डित्य तथा गम्भीर विचारसे किया गया है, वह अन्यन्न, नहीं मिलेगा। स्वामीजीकी व्याख्या 'कर्म-योग' व 'मांख्य योग'का जैसा समन्वय करती है, वह एकदम अनूठी तथा ह्रदयवाही है। ___ स्वामीजीके दृष्टिकोणसे भगवान् श्रीकृष्णद्वारा प्रतिपादित 'कर्म योग' अर्थात् 'कर्म-कौशलता' न तो निष्क्रियतामें ही है और न उस कर्ममें ही है जिसका फल भगवान् के अर्पण कर दिया जाय, वरन् उस यथार्थ कर्ममे है, जिसमें वह बन्धनात्मक प्रतिक्रिया नहीं होती जोकि कर्ताके असंख्य जन्ममरणके प्रवाहका हेतु होता है। यही वास्तवमे 'अकर्म' या 'सहज कर्म' है। इस प्रकार गीता-दपर्ण कतिपय टीकाकारोंके उस नितान्त बौद्धिक दृष्टिभ्रमका उन्मूलन करता है, जिसके अनुसार उन्होंने तत्कालीन वातावरणसे प्रभावित होकर, भगवद् वचनोंमें केवल अपने ही विचारोंकी पुष्टि समझ,ली है । अतः गीताके मत्य मन्देशके जिज्ञासुओंको गीता-दर्पण अवश्य पढ़ना चाहिये। ... (2)THE MODERN REVIEW,Sep.1942 page 223 ... This - book contains all the original slokas of the Gita with simple Hindi rendering of reach, given just after the text,.and then followed by an explanatory note on it in the light of the Sankara Bhasya. The notes, being a sort of commentary; are called 'Sri Rameshwaranandi.Anubhavartha-Dipeka Bhasha-Bhasya' after the name of author's Guru. The sub-title of the bookisrightly given

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