Book Title: Aptavani Shreni 08
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 11
________________ संपादकीय प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकट प्रत्यक्ष 'ज्ञानी' के स्वमुख से प्रवाहित आत्मतत्व, और अन्य तत्वों संबंधी वास्तविक दर्शन खुला होता है। पूरे ग्रंथ का संकलन दो विभागों में विभाजित होता है। पूर्वार्ध में, आत्मा क्या होगा, कैसा होगा, इससे संबंधित अनेक प्रश्न पूछकर प्रश्नकर्ता समाधान प्राप्त करता है। जब कि उत्तरार्ध में 'मैं कौन हूँ', यह किस तरह जाने, खुद के स्वरूप की पहचान, साक्षात्कार किस प्रकार से प्राप्त करे, प्रश्नकर्ता को अब इसकी उत्सुकता जागी है, उसके लिए प्रश्न पूछ-पूछकर मार्गदर्शन प्राप्त कर रहा है! आत्मा के अस्तित्व की आशंका से लेकर, आत्मा क्या होगा, कैसा होगा, क्या करता होगा, जन्म-मरण क्या है, किसके जन्म-मरण, कर्म क्या है, चार गतियाँ क्या हैं, उसकी प्राप्ति के रहस्य, मोक्ष क्या है, सिद्धगति क्या है, प्रतिष्ठित आत्मा, मिश्रचेतन, निश्चेतन-चेतन, अहंकार, विशेष परिणाम, जैसे सैंकड़ों प्रश्नों के समाधान यहाँ पर अगोपित हुए हैं। जीव क्या है? शिव क्या है? द्वैत, अद्वैत, ब्रह्म, परब्रह्म, एकोहम् बहुस्याम्, आत्मा की सर्वव्यापकता, कण-कण में भगवान, वेद और विज्ञान वगैरह अनेक वेदांत के रहस्य यहाँ पर अनावरित हुए हैं। अध्यात्म की प्राथमिक परन्तु मूल यथार्थ समझ, कि जिसके आधार से पूरा मोक्षमार्ग पार करना होता है, उसे समझने में थोड़ा-सा भी फ़र्क रहे, तो 'ज्ञानी' के पेरेलल' रहकर पथ पूरा करने के बजाय एक बाल बराबर भी विपथन हआ तो लाखों मील चलने के बाद भी एक ही द्वार पर पहुँचने के बजाय किसी और ही स्थान पर जा पहुँचेंगे! 'हम सब परमात्मा के अंश हैं' जहाँ पर ऐसी भ्राँत मान्यता बरतती हो, वहाँ पर "वह 'खुद' परमात्मा ही है, संपूर्ण स्वतंत्र है, अंश नहीं परन्तु खुद सर्वांश है।" ऐसा कब समझ में आ सकेगा? और यदि वह बिलीफ़ में ही नहीं होगा तो उस पद को प्राप्त कैसे कर सकेंगे? लोकसंज्ञा के कारण ऐसी तो कितनी ही भ्रामक मान्यताएँ ग्रहण हो चुकी हैं, जो यथार्थ दर्शन से अलग ही प्रकार का वर्तन करवाती हैं! १०

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