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॥णमो सिद्धाणं॥ श्री आर्यरक्षित स्थविर विरचित
अनुयोगद्वार सूत्र
(मूलपाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ और विवेचन सहित)
. (१)
मंगलमय विषय निर्देश णाणं पंचविहं पण्णत्तं। तंजहा - आभिणिबोहियणाणं १ सुयणाणं २ ओहिणाणं ३ मणपजवणाणं ४ केवलणाणं ५।
शब्दार्थ - पंचविहं - पंचविध-पाँच प्रकार का, पण्णत्तं - प्रज्ञप्त हुआ है। भावार्थ - ज्ञान पाँच प्रकार का प्रज्ञप्त-प्रतिपादित हुआ है - १. आभिनिबोधिक(मति)ज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मनःपर्यवज्ञान एवं ५. केवलज्ञान।
विवेचन - टीकाकारों द्वारा प्रस्तुत प्रारंभिक पाठ मंगलाचरण के रूप में व्याख्यात हुआ है। तदनुसार यहाँ मंगलाचरण का सूक्ष्म, संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।
मंगल शब्द शुभ, श्रेयस् या कल्याण का बोधक है। "म - पापं, दोषं, विघ्नं वा गलति - नाशयति इति मंगलं" - जो पाप, दोष या विघ्न को मिटाता है, उसे मंगल कहा जाता है। यह मंगल की शाब्दिक व्युत्पत्ति है। . भारतीय वाङ्मय में ऐसी मान्यता रही है कि प्रारंभ किए जाने वाले ग्रंथ की सुंदर, सफल रूप में परिसमाप्ति हो, एतदर्थ आदि में मंगलाचरण किया जाए।
8 'मः' का अर्थ विष भी है, जो उपलक्षण से पाप, दोष या अशुभ का द्योतक है। "
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