________________
अनुक्रम
१४
१०१
१११
. १. तत्त्व का वसन्त २. मन्दरचारी आकाश-पुरुष ३. भय-भैरव के राज्य में ४. अप्प देवो भव
बुज्झह, बुज्झह, चण्डकौशिक
चक्रवतियों का चक्रवर्ती ७. अवसर्पिणी का विदूषक : मंखलि गोशालक ८. मुक्ति-मार्ग : सब का अपना-अपना ९. केवल आकाश, मेरा चेहरा १०. नर-भक्षियों के देश में ११. अणु-अणु मेरा आगार हो जाये १२. कौन उत्तर देता है १३. सर्वतोभद्र पुरुष : सर्वतोभद्रा का आलिंगन १४. मारजयी मदन-मोहन १५. निराले हैं तेरे खेल, ओ अन्तर्ज्ञानी १६. तद्रूप भव, मद्रूप भव, आत्मन् १७. जो यहाँ है, वही वहाँ है १८. मैं चन्दन बाला बोल रही हूँ १९. अन्तर-द्वीप की एकाकिनी राजकन्या २०. दासियों की दासी चन्दना २१. कहां है वह अश्रुमुखी राजबाला २२. सृष्टि का एकमेव अभियुक्त, मैं २३. भगवान नहीं, मनुष्य चाहिये २४. शिव और शक्ति २५. कामधेनु पृथ्वी का चरम दोहन
११९
१२९
१४८
१५४
१६१
१७२
१८१
१९२
२०३
२१०
२१७
२३१
२४३
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org