Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 10 ५ १५ ७ नग शर तिथि मित वर्षे हर्षेण परीक्षिपासवीरेण । चित्को लेखनस्य प्रारंभः कारयामास ॥ १९ ॥ साधर्मिकवात्सल्यश्रीकल्पमहाद्यगण्यपुण्यानि । कुर्वन् बंधुसमेतस्तदंऽगजो राम नामायं ॥ २० ॥ बहुमूल्यपट्टिकाढ्यं स्फारफरंगी कतीफकसुपृष्टं । सज्जातरूपरूपं वराक्षरं चतुरचित्तहरम् ॥ २१ ॥ षट्लक्षा षट्त्रिंशत्सहस्रमानसमग्रसिध्धांतं । निजजनकप्रारब्धं संपूर्णमलीलिखद्भक्त्या ।। २२ ।। कुलकं ।। संशोधितः स्वशक्त्या शुभभूषणनामपंडितप्रवरैः । विबुधजनवाच्यमानः चित्कोशोऽयं चिरं जीयात् ॥ २३ ॥ चातुविद्य मोढ ज्ञातीयत्रवाडी वासा सुत श्रीनाथ लिखितं श्रीः म चातुर्विद्य मोढ ज्ञातीय त्रवाडी वासा सुत गोव्यंद लख्यतं ॥ श्रीः ॥ Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122