Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 120
________________ संशोधन - माहिती आ. श्रीसोमचंद्रसूरि शिष्य मुनि श्रीचंद्रविजयजी, श्रीहेमचन्द्राचार्यनी 'अभिधान चिन्तामणि नाममाला'नी श्रीदेवसागर कृत टीकार्नु संपादन करी रह्या छे. (२) आ. श्रीराजेन्द्रसूरि शिष्य मुनि राजपद्मविजयजी, चैत्यवन्दनभाष्य तथा तेना परनी संघाचारविधि-टीकार्नु भाषांतर करी रह्या छे. (३) आ. श्रीस्थूलभद्रसूरि शिष्य मुनि अमितयशविजयजी, दर्शनरत्नरत्नाकर नामे ग्रंथनो अनुवाद करी रह्या छे. (४) "श्रीहंसरत्न कृत उपमितिकथा-सारोद्धार"नो प्रारंभिक अंश अत्रे प्रस्तुत कर्यो छे. आ ग्रंथनी एक ज प्रति प्राप्त थई शकी छे. तेना संपादन माटे तेनी बीजी प्रति मळे तेवी अपेक्षा छे, ते हेतुथी आ अंश अहीं छापवामां आवे छे. आ जोईने ते ग्रंथनी बीजी प्रति क्यांय होवा- कोईना ध्यानमां आवे, अगर कोईनी पासे ते होय तो ते प्रत्ये अमाझं ध्यान दोरवा विज्ञप्ति छे. श्री हंसरत्नकृत उपमितिकथासारोद्धारः॥ श्री शखेश्वर-पार्श्वनाथाय नमः॥ स्वस्तिश्रीर्गुण रागिणीवचदनुध्यानाद् वृणीते स्वयं, प्रोद्भूताऽद्भुतसाध्वसा इव जवाद् दूरं व्रजन्त्यापदः । यस्य ज्ञानमनन्तवस्तुविषयं शक्रैश्च संस्तूयते ; श्रीमान् पार्श्वजिनः स वः प्रभवताद् भव्या भवार्त्तिच्छिदे ॥१॥ वागासारभरेण यस्य सततं मैत्र्यादि-सद्भावनावल्ल्य: पल्लविता भवन्ति भविनां स्वान्तालवालावनो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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