Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 119
________________ 114 श्री पलाणे पोतानो अभ्यास रजू को. श्री नाथालाल गोहिले रविभाण परम्परा विशे दार्शनिक पीठिका रजू करी, 'साहेब'-सद्गुरुनो महिमा गायो हतो. श्री निरंजन राज्यगुरुए महापंथबीजमार्ग मध्यकाळना साहित्यमां कई रीते संकळायेल छे ते जणावी पुरुष-प्रकृति, मार्कंड ऋषितुं योगदान वगेरे विशे वात करी हती. प्रत्यक्ष संबोधन-कथनशैली ए महापंथ, अगत्यनुं लक्षण छे, एम कडं. श्री पढियारे कवि भाणनां भजनो गाईने श्रोताओने रसतरबोळ कर्या. समग्र संगोष्ठीनुं सारसमापन करतां आचार्यश्री विजयशीलचंद्रसूरिए जणाव्युं के लोकचेतना सार्वत्रिक छे. आपणे परा-पश्यंती पामीने बुलंद थवानुं छे. संसारनी पेले पारनुं परम तत्त्व-ब्रह्मतत्त्व एक ज छे, ए अनुभूतिनुं गर्भतत्त्व ज्यां आवे त्यां हरियाळी. आ संगोष्ठीथी आपणे एक डगलुं आगळ वधीए छीए, छतां मध्यकाळy घणुं साहित्य, खास करीने जैनसाहित्य हजुये वणस्पयुं रडुं छे, ए हकीकत एमणे स्पष्ट करी. आ संगोष्ठीनी अनुगोष्ठी माटे अभ्यासुओने अडधा वरस जेटलो के तेथी वधु समय आपवामां आवे तो आ दिशामां करवानां कामो वधु तत्त्वो ने तथ्यो पारखवानी बाबतमां नक्कर साबित थाय एवी आशा व्यक्त करी. आ संगोष्ठीने ओच्छव गणावी, यत्किचित् जे कंई प्राप्त थयुं छे तेनो आनंद आचार्यश्रीए व्यक्त कर्यो. श्री हरिकृष्ण पाठक, श्री सनत् भट्ट, श्री नीतिन महेता, श्री जयेश भोगायताए पोताना प्रतिभावो रजू कर्या हता. केटलाक प्रतिभावकोए वक्ताओने तथा चर्चकोने वधु समय मळ्यो होत तो वधु लाभ थात एवं मंतव्य रजू कर्यु हतुं. अंते श्री भद्रंकरोदय शिक्षण ट्रस्ट वती श्री विक्रमभाई शाहे तथा आयोजको वती श्री रमण सोनीए आभारविधि को हतो. बे दिवसनी समग्र संगोष्ठी दरम्यानना अल्पाहारो ने भोजन पण यजमानना स्वभाव जेवा मधुरतामय रह्यानो आनंद अने आतिथ्यनी अपूर्वता तरफनो अहोभाव पण संगोष्ठि, उपफल बनी वृत्त संकलन : प्रा. रमणीकलाल के. शाह प्रा. विनोद गांधी गोधरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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