Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 117
________________ 112 राखवानो छे, एम कही चैतन्यतत्त्वनी आ द्वारा प्राप्ति थाय एवी अभिलाषा तेओए सेवी. 'म.का. धार्मिक प्रवाहो- ऐतिहासिक अने दार्शनिक पीठिकामां' ए मथाळा हेठळना संगोष्ठीना केन्द्रीय वक्तव्यमां डॉ. चिनुभाई नायके इतिहास अने साहित्यनी समज आपवानो प्रयत्न कर्यो. तेओए इतिहासने भूतकाळ अने वर्तमान वच्चेना वणथंभ्या संवाद तरीके ओळखाव्यो. ए संवादमां, मध्यकाळना सर्जकोए मधुर सूर पूर्यो छे एम तेओए कह्यु. तीव्र वेदना अनुभव्या वगर प्रभु आवे नहि, ए वात मीरांना पदगानथी स्पष्ट करी, संतोए मध्यकाळना समाजमांना अंधाराने दूर कयुं छे एवं कही, मध्यकाळना साहित्यमां माणसनो महिमा थयो छे एवं तेओए प्रतिपादित कर्यु. श्री नायके संतो-कविओनां भजनो, पदो ज 'पंचम वेद' छे एम का. पोतानी वातना समर्थनमा वच्चे वच्चे सांगीतिक रागोमां कबीर, मीरां आदिनां पदोने तेमणे रजू काँ. प्रथम बेठकनी परिपूर्ति डॉ. सुभाष दवे अने डॉ. नरोत्तम पलाणे करी हती. श्री पलाणे धर्मना उद्भव अने शरीरधर्म, प्राकृतिकधर्म विशे स्पष्टता करी हती. तेमणे संगोष्ठीना यजमानगाम गोधराना नामने संशोधनात्मक दृष्टिए समजाव्यु. ए रीते छठ्ठी सदीना ताम्रपत्रमांना 'गोध्रहक' नामनो उल्लेख करी श्री पलाणे आ गामने नागपूजा, केन्द्र गणाव्युं. बीजी बेठकना प्रासंगिक वक्तव्यमां श्री रमण सोनीए जणाव्यु के आपणी जिज्ञासावृत्ति रसवृत्तिनो पर्याय थाय तो परिसंवाद सफळ बने. गोष्ठीनो उपक्रम समजावी, आपणी सांस्कृतिक चेतनाने संकोरवा हस्तप्रतोनुं परिशीलन थाय, आपणे प्रत्यक्ष संस्कृत वारसो आत्मसात् करवानी तक मळे एवी आशा व्यक्त करी. 'जैन परंपरा' ए विषय पर प्रा. रमणलाल ची. शाहे विशदताथी तेमनुं वकतव्य रजू कयें. तेमणे हस्तप्रतो, ज्ञानभंडारो, जैनकविओ, तेमनी कृतिओ, जैनदर्शनमा रहेल Social Unity, भक्तितत्त्व, ज्ञानतत्त्व वगेरेनी मार्मिक मीमांसा करी, तेनुं स्वरूपदर्शन कराव्यु. आ बेठकमां जैन संप्रदायनां पदोनुं गान श्री सुंदरलाल शाहे (डभोई) तथा श्री जयदेव भोजके कर्यु. श्री जयदेव भोजके कडं हतुं के आजे पण शास्त्रीय संगीत तो मध्ययुगर्नु ज छे; एनी जाळवणी जैन, पुष्टि संप्रदायोए करी छे. मध्यकाळना साहित्ये त्रणेक हजार गीतना ढाळ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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