Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 106
________________ 101 रोमावलि, ऋजु, सम, सूक्ष्म, संहत, श्याम, स्निग्ध, रमणीय रूंवाडा वाळी हती. नाभि, गंगाना जमणी बाजु घूमता आवर्तना तरंगो जेवा भंगवाळी, सूर्यकिरणथी विकसित पद्म जेवी गंभीर हती. मध्यभाग, संहत, मुशळ दर्पणनो हाथो सोनानी तरवारनी मूठ अने वज्र जेवो कृश हतो. कटि, अश्व, सिंहना समी गोळाकार हती. गुह्यप्रदेश, जातवान अश्वना जेवो निरुपलेप, प्रशस्त हतो. गति, गजवर समी, पराक्रमी अने सविलास हती. जंघा, गजराजनी सूंढ समान हती. चूंटण, संपुट जेवा आने मांसल होवाथी गूढ हता. पीडी, हरणना जेवी, कुरुविंद तृण जेवी, सूतरनी आंटी जेवी वर्तुलाकार उत्तरोत्तर पातळी थती हती. चरणांगुलि, अनुक्रमे उत्तरोत्तर लघु, वच्चे विरल अवकाश वाळी, पुष्ट हती. चरणना नख, उन्नत, पातळा, राता, स्निग्ध हता. चरणतळ, रक्त कमळनां पत्र समां मृदु, सुकुमार, कोमळ हतां अने पर्वत, नगर, मगर, सागर, चक्र जेवां मंगळ चिह्नोथी अंकित हतां. देहकान्ति, निर्धूम पावक, विद्युत् , तरुण रविकिरण समी हती. तीर्थंकर महावीर आठ हजार (एक हजार ने आठ ?) पुरुषलक्षण धरावता हता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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