Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ 13 तेहज घडी लेखई गणुं रे तेह दिवस मुझ धन्न मे० । तेह समय स्वकीयारथो रे लाल जमवारो वली धन्न मे० ॥ २ ॥ अजित... । अह निशि मुझ मनमां वसइ रे अवर नहीं कोई ध्यान मे० । तुम्हसुं लागी मोहिनी रे लाल तूंहि ज जीवन प्राण मे० ॥ ३ ॥ अजित... । अवधारो अरिहंतजी रे निश्चय मननी वात मे० । निरवह्यो निज दासनिं रे लाल त्रिभुवन पति विख्यात मे० ॥ ४ ॥ अजित... । ओलगडी सफली करो रे पूरो सेवक आस मे० । तत्त्व विजय प्रभु ध्यानथी रे लाल नित नित लील विलास मे० ॥ ५ ॥ अजित... । । इति अजित जिन भासः ।२। ( सुणि मेरी सजनी ... ए देशी ) । संभव जिननी सेवा कीजइ रे मानव भवनो लाहो लीजइ रे । पूरव पुण्य पसाइं पायो रे मइं तो दिल मई तूंहिज ध्यायो रे ॥ १ ॥ सं.. । निगुणा दीसइ देव अनेरा रे नाम धरावइं जगमइं भलेरा रे। तेहथी काम न सीझइ मेरा रे ते माटइ निहुरा करूं छु तेरा रे ॥ २ ॥ सं.. । साहिब ते जे चाकरी जाणइ रे सेवक नई संभारइ टाणइं रे।। गुण अवगुण दिल मांहि नाणइ रे ते सज्जन नई सहु वखाणइ रे ॥ ३ ॥ सं.. । कूड कपट हुइ जेहनां मन मई रे मुख मीठा जे धीठा तन मइं रे । कहो किम चित्तडं तेहशुं बाझइ रे तेहसुं प्रीति करी किम छाजइ रे ।।४॥ सं.. । साची प्रीति ते संभवजिनकी रे तुं सवि जाणइ वात ज मनकी रे । साहिब चित्तसुं जोयो विचारी रे तत्त्व विजय प्रभु सेवाकारी रे ॥ ५ ॥ सं.. । । इति श्री संभव जिन गीतं ।। ५. सजनी रजनी न जावें रे। ६. करुं तेरा रे पाठां. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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