Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ ( देशी मोतीयडा नी) मिथिला नयरी प्रभुजी सोहइ विजय नरिंद नंदन मन मोहइ मोहना नमिनाथ जिणंदा लालनां नमिनाथ जिणंदा । वप्रा माता मंगलकारी नीलुप्पल लंछन पदधारी मो.ला. ॥१॥ आसकारी सेवक छु तेरा नीरासी प्रभु तुम्ह हओ मेरा मो.ला. । तुम्ह हम किम ए वात ज बनस्यइ बिरुद अंगीकृत तुम्ह किम रहस्यइ मो. ला. ॥ २ ॥ अवर पासि जई जब याचीस्यइ तब ताहरुं भलुं नहीं दीसइ मो.ला. । देई लालचि दूरिजे रहवं ते खिण खिण मनमां दुख सहवं मो.ला. ||३|| गुणवंतस्युं जे गोठि करी जइ तेह वेला लेखामां लीजइ मो.लो. । इम चित जाणी करुणा आणी देयो परमाणंद गुणखाणी मो.ला. ॥४॥ साहिब साचा ते कहवाइ निगुणा सेवकनि निरवाहइ मो.ला. । तत्त्व विजय प्रभु ध्यानि रहइ मंगल माला नित नित लहिइ मो.ला. ॥५॥ । इति श्री नमिनाथ जिन गीतं ।२१। २२ ( ढाल फागनी) ब्रह्मचारी शिर सेहरो हो वंदो नेमि जिणंद समुद्र विजय नृप लाडिलो हो मात शिवादेवी नंद ।।१।। नेमीसर जिनवर भेटीइ हो मेटीइ पाप पडूर ने... तोरन आए तुरत फिरे हो पशुआं सुणी रे पोकार जीव दया मनि आदरी हो परिहरी राजुल नारी ॥२।। ने०। वरसीदान देइ करी हो सहसावनि अभिराम । लिइ संयम एक सहसस्युं हो पछई लहिउं केवल स्वामी ॥३।। ने०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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