Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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॥३७॥
॥३८॥
॥४०॥
॥४१॥
कलहंस ख वयणाणुकारए तुम्ह लोयसवणेसु । दिसि वयंभ माणे सरयंते रम्मसमयंमि अपिबंसु पढम देसण रसायणं तुम्ह जे उ ते धन्ना । फुटुंतजाइमउलं छेयच्चिय नणु लिहंति छिणो सुयपारगेण तुमए पत्तं सयमेव जुगपहाणत्तं । कंठीरवमभिसिंच का वा मयनाहगत्तंमि
॥३९॥ विबुहजणजणियतोसं अदिट्ठदोसोदयं सुरसकंतिं । को तुम्ह नाभिनंदइ कव्वमउव्वं जए सुयणो इयरा सेकेलक्खिव्व कव्वबंधे समे व विसमे वा । न खलइ कहिं पि वाणी तुम्हज्जुणबाणसेणिव्व अंतुज्जलपज्जलिरनाणदीवए सपर समय विउसंमि । कर कलिय पुन्ययंमि च रयणीइ महंधयारे वि ॥४२।। नेयाइयणे सत्थं वक्खाणं ते तदक्खरं चेव । छत्तीससहसमाणं लीलाइ तुमे सुसीसाणं मइ कोउय कंपियमत्थयस्स विउसस्स कस्स न हु जाया । सुरगुरुणो मइविहवो दूरं नं(म)दायरा बुद्धी
॥४४॥ वाईण दप्पदलणं रायसमक्खं बहुं कुणंतेण । असेद मेण च तुमए जयपडगो जए पत्ता सायंभरीनरिंदो वाइसरिएण हरिसिओ वाए । वयणं सहस्सेण तुमं थुयमाणो नाइ झणिनाहो ॥४६॥ समय सहस्स दंसिय सपंक्ख परपक्ख सहसपच्चक्खं । मेरु व्व थिरं काउं चित्तं भव्वाण विहिधम्मे आसावल्लीए तए विहिउ संघस्स कोवि आणंदो । जो सयल तित्थजत्ता फल पयविमगूढमारुढे
॥४३॥
॥४५॥
॥४७॥
॥४८॥
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