Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 95
________________ 90 अनेक ग्रंथो रच्या हशे, अने जीवनना उत्तरार्धमां, वार्धक्यने खोळे बेठा हशे तेवा काळमां, योगविषयक ग्रंथो रच्या हशे, अने तेमां पण 'पञ्चसूत्र' नुं स्थान सौथी छेल्लु के छेल्ली कृतिओ पैकी एक तरीके- हशे. प्रो. अभ्यंकर पण आ मुद्दा परत्वे पोतानो मत आवो ज नोंधे छे : 'एतै रचितानां तेषां तेषां ग्रन्थानां क्रमप्रतिपादने टीकाग्रन्थाः प्राय: प्रथम रचिता अनन्तरं धर्मकथा रचितास्तदनन्तरमनेकान्तजयपताका-लोकतत्त्वनिर्णयादयः प्राधान्येन जैनसिद्धान्तप्रतिपादनपरा ग्रन्था निर्मितास्तदनन्तरं षड्दर्शनसमुच्चय-शास्त्रवार्तासमुच्चय-पञ्चाशकादयो दर्शनग्रन्थास्तदनन्तरं च योगदर्शनप्रतिपादकौ योगबिन्दु-योगदृष्टिसमुच्चयौ रचिताविति भाति । सर्वेषामन्ते परिणतप्रज्ञैरेभिरागमसारभूतः स्वकीयग्रन्थप्रतिपादितानां विविधानां विषयाणां सङ्ग्रहस्थानभूतश्चासौ विंशतिर्विशिकानामा ग्रन्थो निरमायीति ।'७० आमां आपणे हवे उमेरी शकीए के 'तदन्तरं योगमार्गारूढैरेभिरन्तिमतमे निजे जीवनभागे पञ्चसूत्रकस्य सटीकस्य रचना सन्दृब्धा स्यादिति ।' । उपरनी चर्चाथी एवी कल्पना स्फुरे छे के आपणे त्यां कदाच बे प्रकारनी ग्रंथरचना-पद्धति हशे : १. उत्तरोत्तर ग्रंथोमां पूर्व पूर्व ग्रंथ-प्रतिपादित विषयविस्तरण करवानी पद्धति ; अने २. पूर्व पूर्व ग्रंथोमां निरूपित विषयोनो उत्तरोत्तर ग्रंथोमां संक्षेप करवानी पद्धति. भगवान हरिभद्रसूरि विशे एम कही शकाय के तेमणे आ बीजी पद्धति अपनावी होवी जोईए. स्पष्टताथी समजाववा माटे आम कही शकाय के तेमणे : १. पञ्चाशक २. विशिका ३. षोडशक ४. अष्टक ५. पञ्चसूत्रक आ क्रमे पोतानी कृतिओ रची होय तो ते बनवाजोग छे. अंतमां उमेरदुं जोईए के श्रीहरिभद्राचार्यनी प्रसिद्धि १४४४ प्रकरणोना Jain Education International For Private & Personal use only .. www.jainelibrary.org

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