Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ जय वीतमान ! जय वीतमाय ! जय शान्तिकान्त ! विगेतान्तराय ! ॥२॥ जय० ॥ जय निर्विकार ! भवनिःप्रचार ! जय कर्मकन्द कल्पनकुठार ! ॥३॥ जय० ॥ जय निर्विकल्प ! विमलावलोक ! जय वीतकाम ! जय वीतशोक ! ॥४॥ जय० ॥ जय विश्वनाथ ! विशदात्मरूप! जय सिद्ध रूपचन्द्राभिरूप! ॥५॥ जय० ।। इति समस्तजिनस्तुतिः ॥ (२) ढाल जय शिवॐकारा । एहनी ॥ जय जनतारक हे ! जगदाधारक हे २ ! जय जय कमठतपोमदभंजक ! भुजगोद्धारक हे ! जय जय जय जय जय जिनदेव ! ॥१॥ आंकणी ।। जय जय सकलसुरासुरसेवित ! जय जगदीश्वर हे ! २ । जय जय भवनिर्विण्णजनाश्रितचरणेन्दीवर हे ! जय ४ जय जिनदेव ! ॥२॥ जय जय जन्मजरामरणोत्कटसंकटवारण हे ! २ ।। जय जय दुरितनिदाघविघातनघनसाधारण हे ! जय० ॥३॥ जय जय लोकालोकविलोकनकेवललोचन हे ! २ । जय जय भव्यसमूहसरोरुहबोधविरोचन हे ! जय० ॥४|| जय जय चारुविहारपवित्री-कृतभुवनोदर हे ! २ । जय जय मधुररणत्सुरदुन्दुभिभणितयशोभर हे ! जय० ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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