Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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'एमेव भवो इहरा ण जाउ सन्ना तयंतरमुवेइ'३६ आ पाठ हवे, ‘पञ्चसूत्र' गत आ 'न सत्ता सदंतरमुवेइ' ए वाक्य अने तेना प्रयोगनी पद्धति जोया पछी अशुद्ध प्रतीत थाय छे. लेखकदोषथी 'सत्ता', 'सन्ना' थयुं हशे, अथवा वांचनारे तेने खोटं वांच्यु होय एq ए बने. अने कोइ कोइ हस्तप्रतिमां ‘एमेव भवो' पाठ मळे छे ज. आथी, 'सत्ता न तयंतरमुवेइ' एवं वाक्य ज आ स्थळे अर्थसंगत अने बंधबेसतुं पण आवे छे. अने आ जोतां 'विंशिका' ना अने ‘पञ्चसूत्रक' ना प्रणेता एक ज आचार्य होवानी धारणा बिलकुल नि:संदेह बने छे.
७. 'पञ्चसूत्रक' मां पांचमा सूत्रमा :
'ण दिदिक्खा अकरणस्स । ण यादिम्मि एसा । ण सहजाए णिवित्ती । ण निवित्तीए आयट्ठाणं । ण यण्णहा तस्सेसा । ण भव्वत्ततुल्ला णाएणं । ण केवलजीवस्त्रमेयं ।'३७
इत्यादि वाक्योमा आवती चर्चा ज, बीजी 'लोकाऽनादित्वविंशिका'नी : 'जह भव्वत्तमकयगं न य निच्चं एव किं न बंधोऽवि ? । किरियाफलजोगो जं एसो ता न खलु एवं ति ॥१४॥ भव्वत्तं पुणमकयगमणिच्चमो चेव तहसहावाओ। जह कयगोऽवि हु मुक्खो निच्चोऽवि य भाववइचित्तं ॥१५॥ एवं चेव यऽदिक्खा( दिदिक्खा) भवबीजं वासणा अविज्जा य।
सहजमलसद्दवच्चं वन्निज्जइ मुक्खवाईहिं ॥१६॥३८ - आ गाथाओमां जराक प्रकारांतरे वर्णवाई छे.
८. ए ज रीते, प्रथम सूत्रगत 'अणाइजीवे, अणादिजीवस्स भवे, अणादिकम्मसंजोगणिव्वत्तीए'३९ ए वाक्यनो तथा पंचमसूत्रगत 'अणाइमं बंधो पवाहेणं'४० ए वाक्यनो ज युक्तिप्रधान अर्थविस्तार, बीजी विंशिका नी प्रारंभनी बारेक ४१ गाथाओमां जोवा मळे छे.
९. प्रथम सूत्रना ‘सुद्धधम्मसंपत्ती पावकम्मविगमाओ, पावकम्मविगमो तहाभव्वत्तादिभावाओ"४२ ए वाक्यनो भावानुवाद, चोथी विशिका नी प्रथम गाथा :
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