Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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'निच्छयओ पुण एसो जायइ नियमेण चरमपरियट्टे ।
तहभव्वत्तमलक्खयभावा अच्चंतसुद्ध त्ति ॥१॥४३ आमां, तेम ज ते ज विंशिका नी आठमी गाथाना पूर्वार्ध:
'एयंमि सहजमलभावविगमओ सुद्धधम्मसंपत्ती ॥४४ एमां स्पष्टरूपे प्राप्त थाय छे. १०. तृतीय सूत्रमा आ प्रमाणे पाठ छे :
'तओ अणुण्णाए पडिवज्जेज्ज धम्मं । अण्णहा अणुवहे चेवोवहाजुत्ते सिया।धम्माराहणं खुहियं सव्वसत्ताणं । तहा तहेयं संपाडेज्जा । सव्वहा अपडिवज्जमाणे चएज्ज ते अट्ठाणगिलाणोसहत्थचागनाएणं ।'४५
__ आ पाठनी साथे श्रीहरिभद्राचार्ये ज रचेला 'धर्मबिन्दु' ग्रथनां केटलांक सूत्रो सरखावी शकाय तेम छे. आ रह्यां ते सूत्रो :
'तथा-गुरुजनाद्यनुज्ञेति ॥२३॥ तथा तथोपधायोग इति ॥२४॥ दुःस्वप्नादि-कथनमिति ।२५॥तथा विपर्ययलिङ्गसेवेति ।२६॥ दैवज्ञैस्तथा निवेदनमिति ।२७॥ न धर्मे मायेति ।२८॥ उभयहितमेतदिति ।२९॥ यथाशक्ति सौविहित्यापादन-मिति ॥३०॥ ग्लानौषधादिज्ञातात् त्याग इति ।३१॥४६
अहीं खूबी ए छे के 'धर्मबिन्दु' नां उपर लखेलां सूत्रो पैकी २३,२४,२५ एवां अमुक सूत्रोनो अनुवाद, उपर नोंघेल पंचसूत्र-पाठमां साक्षात् प्राप्त थाय छे.४७ पंचसूत्र अने तेनी टीका - बन्ने एक ज कर्ता-हरिभद्रसूरिनी ज रचना छे तें वातने आ बाबत प्रबळ समर्थन पूरुं पाडे छे.
११. पांचमा सूत्रमा आवतां 'ण दिदिक्खा अकरणस्स' ए तथा 'ण सहजाए णिवित्ती'४८ ए, आ बे वाक्योना संदर्भ, ‘योगदृष्टिसमुच्चय' ना :
दिदृक्षाद्यात्मभूतं तन्मुख्यमस्या निवर्तते । प्रधानादिनतेर्हेतुस्तदभावान्न तन्नतिः ॥२००॥ अन्यथा स्यादियं नित्यमेषा च भव उच्यते ॥२०१॥४९
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