Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 88
________________ 83 भले जुदा संदर्भमां, आ शब्द ५५ जोवा मळे छे. त्यां तेनो अर्थ ते नामनी 'सर्वमंगलकारिणी पूजा' एवी थाय छे. ९मा षोडशक ना १० मा श्लोकमां आ पूजाने 'विघ्नोपशमनी' नामे वर्णवी छे, पण तेना टीकाकार श्रीयशोविजयजीए ए पूजा 'समन्तभद्रा' ५६ तरीके प्रसिद्ध होवानुं सूचव्युं छे ज. १४. अने पञ्चसूत्र ना अंतिम सूत्रमां लख्युं छे के : 'न एसा अन्नेसिं देया । लिंगविवज्जियाओ तप्परिण्णा । तयणुग्गहट्टाए आमकुंभोदगनाएणं । एसा करुण त्ति वुच्चइ । इत्यादि. आ वाक्योमां छे तेवो ज भाव दर्शावतो 'योगदृष्टिसमुच्चय' नो अंतभाग जुओ : 'हरिभद्र इदं प्राह नैतेभ्यो देय आदरात् ॥ २२६॥ अवज्ञेह कृताऽल्पाऽपि यदनर्थाय जायते । अतस्तत्परिहारार्थं न पुनर्भावदोषतः ॥ २२७॥५८ शाब्दिक तफावत छतां बन्ने संदर्भोनुं आर्थिक साम्य अहीं ध्यानपात्र छे. उपर नोंधेला तमाम संदर्भों स्पष्टपणे दर्शावे छे के 'पञ्चसूत्र' - मूळना पण प्रणेता भगवान हरिभद्रसूरि स्वयं ज छे. ए सिवाय तेमना अन्य अनेक ग्रंथोना अनेक संदर्भ साथे, 'पञ्चसूत्र' ना संदर्भोनुं आटली हदे साम्य संभवे नहि. आम छतां, जो 'पञ्चसूत्र' ने आ. हरिभद्रसूरिनी पूर्वे थयेला कोइ अज्ञात चिरंतन आचार्यनी ज रचना लेखवानो आग्रह राखवामां आवे तो उपरना, 'पञ्चसूत्र' ना संदर्भो साथे सरखाववामां आवेला, हरिभद्राचार्यना अन्यान्य ग्रंथोना संदर्भों तेम ज तेमां निरूपित पदार्थोने, हरिभद्राचार्ये 'पञ्चसूत्र' मांथी शाब्दिक तेमज आर्थिक रीते उछीना लीधा होवानुं आपणे मानवुं पडशे, अने ए साथे ज आ ग्रंथोनी / विचारोनी / रजूआतनी हारिभद्रीय मौलिकता समाप्त थई जशे, जे कोई रीते स्वीकार्य न गणाय.. ६. पं. बेचरदास दोशीए नोंध्युं छे के, 'वैयाकरणोए शब्दशास्त्रनी दृष्टि प्राकृतना ऋण प्रकार जणावेल छे: १. संस्कृतजन्य प्राकृत ; २. समसंस्कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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