Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आ मार्गदर्शन, उपर नोंधेली मारी कल्पना के 'आवां नामो तो हरिभद्राचार्यनीज विशेषतारूप छे.' तेने ज प्रोत्साहन आपनारुं छे.
५. सौथी महत्त्वनी बाबत ए छे के आपणे 'पञ्चसूत्र' नां तथा हरिभद्रसूरिजीए रचेला अन्य ग्रंथोमां आवतां वाक्यो, वाक्यखंडो अने शब्दोनुं शाब्दिक अने आर्थिक साम्य तपासवुं जोईए. आ प्रकारनुं अंतरंग परीक्षण आ ग्रंथना कर्तृत्व अंगे निर्णय लेवामां सबळ सहायक साधन साधन बनी शके. आथी आपणे 'पञ्चसूत्र' ना केटलाक अंशोनी शक्य एटली तुलना हरिभद्रसूरिरचित 'विंशतिविंशिका', 'धर्मबिन्दु', 'योगदृष्टिसमुच्चय', 'षोडशक' इत्यादि ग्रंथोना अंशो साथे करीए :
१. 'पञ्चसूत्रक' ना चतुर्थ सूत्रमां 'व्याधितसुक्रियाज्ञात' आवे छे, ते आ प्रमाणे छे : 'वाहियसुकिरियानाएणं, से जहा केइ महावाहिगहिए, अणुभूयतव्वेयणे, विण्णाया सख्त्रेण, निव्विण्णे तत्तओ, सुवेज्जवयणेण सम्मं तमवगच्छिय जहाविहाणओ पवन्ने सुकिरियं निरुद्धजहिच्छाचरे, तुच्छपत्थभोई मुच्चमाणे वाहिणा नियत्तमाणवेयणे समुवलब्भारोग्गं पवड्डूमाणतब्भावे, तल्लाभनिव्वुईए तप्पडिबंधाओ सिरारवाराइजोगे वि वाहिसमारोग्गविण्णाणेण इट्ठनिप्फत्तीओ अणाकुलभावयाए किरियोवओगेण, अपीडिए, अव्वहिए, सुहलेस्साए वड्डइ, वेज्जं च बहु मन्नइ २१ इत्यादि.
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आज व्याधितसुक्रियाज्ञात जराक जुदा शब्द अने संदर्भमां 'विंशतिविंशिका' नी १९२मी विंशिकानी गाथा / पंक्तिओमां जोवा मळे छे : 'नो आउरस्स रोगो नासइ तह ओसहसुईए ॥१२॥ न य विवरीएणेसो किरियाजोगेण अवि य वड्डेइ । इय परिणामाओ खलु सव्वं खु जहुत्तमायरइ ॥ १३ ॥ थेवोऽवित्थमजोगो नियमेण विवागदारुणो होइ । पागकिरियागओ जह नायमिणं सुप्पसिद्धं तु ॥१४॥ जह आउरस्स रोगक्खयत्थिणो दुक्करा वि सुहहेऊ । इत्थ चिगिच्छाकिरिया तह चेव जइस्स सिक्खति ॥ १५ ॥ २
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