Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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||१७||
पहुजम्मे मिउ पवण्णासी कुसुम तरुणो दि... विमलो । आसितमा बरिसमिहं भत्तुव्वए वत्तइ वसंतो
॥१३॥ हालते विहुसंपुन्न लक्खणं कंतर्मिदुबिंबं व । रागेण व लच्छीए तुह गायं गाढमवगूढ
॥१४॥ तुय धुवमब्भु... चं सव्वेविसुरा निरुविउं हित्था ।। हिट्ठोवरिं च नट्टा दंसंति न सप्पयं अप्पं
॥१५॥ कुमरत्तेवि निसग्गा भववेरग्गं तसुग्गयं किंपि। जोगीण सुजोगाणवि पइं जेण धुणावियं सीसं ॥१६॥ तं सुद्धप्पा न हु धण रमणी सयणेसु कासि पडिबंधं । कलहंसो किं पल्लवकलुसजलेसु समल्लियइ जं सेसवेसयं विय वए मणं आसि तुह न तं चुज्जं । जेणन्नवोहिणिज्जा हवंति न कयावि जिणवइणो ॥१८॥ विक्कमपुरं पवित्तिय भमर तई जउण संयमेणेव । तुम्ह जिणचंद मुणिवइ जोगीणं दिक्ख गहणखणे ॥१९॥ तित्थाहिवत्त जुग्गय भवबुज्झिय जिणवइति तुह नामं । नूण कयं पढमं चिय अइसयनाणीहि सुगुरूहिं ॥२०॥ पंच महव्वय सुर सेल संगयं इयर दुव्वहंपि खमं । सेसातिसाइ वारिओ तुमं तहं तान पहु संतो
॥२१॥ रत्तावि अहं चत्ता दीणाइ समप्पणो ण परिभूया । तह चरणग्गि लग्गा सेवे सययं कुलीणत्ता
॥२२॥ अहुणाउ गुत्तिवालो जाओ समिइ सुगाढमासत्तो । सत्थधरो किं वि वयं गहिऊण ताय मह वइज्जो निदइ मंजण पुरओ एयं भणिउं वदुत्थ संदेसं । लच्छीए तुह जईसर दुयं समुदं गया कित्ती
॥२४|| त्रिभिः कुलकम् ॥
॥२३॥
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