Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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॥१॥
॥३||
॥४॥
श्री जिनपतिसूरि पंचाशिका
- श्री भंवरलाल नाहटा रागिमिहुणं व रत्तं सुकुमारं चंदव्वड भवणं व । दोसरहिं च सलक्खण विंद वच्छं च ससिरीयं माणिमणं वसु मुन्नयम मायि वयणं च सरलमभिवंदे । जिणवइणो नियगुरुणो चरणजुगं सूरिरायस्स
॥२॥ सुगुरु गुरुपुन्नलब्भं दंसणमवि तुम्ह पायपउमाणं । छायं पि अकयसुकया पावंति न कप्पसाहीणं पहुचरिय संकहविहु विहुणिय संता संतइ तुम्ह । गिण्ह वंदण वच्चत्थ निव्वुइं कस्स न जणेइ समयम्मि जम्मि जम्मे जाओ तुम्हारिसाण अकलीण । सो कह कलित्ति भन्नइ नहि जलणे जं जलुप्पत्ती खारोदहिम्मि अमयं मुत्तिय भवि फरुससिप्प पुडयंमि । जल ममलं मलिण घणे दट्टणं अहव तक्केमि ॥६॥ एयारिसेवि समये संभवइ भवारिसाण इह भूई। आइवराहुव्व धरुद्धरणाय कयावयाराणं हसइ व अणूवदेसे मरू विधलसेयसिहरदंतेहिं । नव कप्पदुमे सिव सुह फलयंमि तुमंमि जायंमि ||८|| असुराणवि नमणिज्जे करियावाइम्म अंगिरस जणए । जयइ दिव्वं विक्कमपुर मप्पुव्व गुरुंमि तइं जाए तं पिहुणो पढम चिय नामं जसवद्धणुत्ति विक्खियं । मन्ने भावि भवारिम पुरिस जणिगत जसवत्ता ॥१०॥ जणणीवि सूहवा जसमई कहिं सामहिव्व मा हवउ। जीसे गब्भंमि गुरू तं वुच्छो कणयकंतिधरो
॥११॥ अइसुंदेरि पत्तं लोए चित्तेण सयल मासाणं । नूणं तुह जम्मेणं तुल्लविय कालओ इहरा
।।१२।।
||७||
॥९॥
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