Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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चंदंगारयसूरा आया होरा पहासिया मुणिणा । सम विसम विसरिसेहिं सुहासुहं होइ एएहिं ॥३॥ (४) इक्को होइ मयंको धरासुओ दोसु दिणयरो तीसो । एसा गहणसन्नं (णे सन्ना?) निद्दिट्ठा गणहरेंदेण ॥४॥ (५) तिन्नि वि जत्थ मयंका पाए दीसंति तम्मि जाणेहु ।। दुब्भिक्खं मर(क्खडमर ?)रहियं कालं गयसोगसंतावं ॥५॥ (६) १११ दुण्हं ससीण पुरओ दिव(वा)यरो जम्मि दीसए उइओ । सुक्खं मणनिव्वाणं विजयं पि य तम्मि जाणेहु ॥६।। (७) ११३ पुरउ मयंकजुयलस्स जम्मि आरोयपट्ठिओ होइ । लाभो तत्थ वियाणसु विजयं पियसंगमं तत्थ ॥७॥ (८) ११२ धरणीधरस्स पुरओ दिवाइरा जम्मि दुन्नि दीसंति । जाणसु पअत्थलाभो विजयं चिय ठवण पूया य ॥८॥ (९) २३३ आरो(रा?) रवी मयंको कमेण दीसंति जम्मि पायम्मि । कज्जं चिंतियमित्तं अइरा किर सिज्झए तम्मि ॥९॥ (१०) २३१ दुहं धरासुयाणं चंदो मज्झम्मि दीसए जम्मि । तम्मि किर कज्जसिद्धी महिलालाभो विसेसेण ॥१०॥ (११) २१२ । वसुहासुओ मयंको दिवायरो हुंति तिन्नि वि कमेण । पीलेउं सयलदुहं कल्लाणं पावए इत्थ ॥११॥ (१२) २१३ अंगारयस्स पुरओ चंदं जुयलम्मि दीसइ जलंतं । चिंतिय अत्थविणासो कज्जं च निरत्थयं तस्स ॥१२॥ (१३) २११ दोसुम्मूलणदक्खा दिवायरा तिन्नि वि हवंति । लच्छी मण देवाणं नारीसुह संगमं तत्थ ॥१३।। (१४) ३३३ तरणिजुयलस्स पुरओ दीसइ चंदो पयट्ठिउ जम्मि । आगोरं तम्मि फुडं लच्छी तह सुंदरा महिला ॥१४॥ (१५) ३३१
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