Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ 34 ॥२५॥ ॥२६।। ॥२७॥ ॥२८।। ॥२९।। ॥३०॥ दसचक्कवाल आयारि दिसिजुयं समणधम्मवरवीढं । पइदिणमणलसवित्ती तुममुज्जोएसि सूरुव्व अट्ठारस कुरुवइ खोहिणीउ जह पावठाणसेणीओ । तुममज्जुणकित्तिधरो मुणिंद विक्खिवसि लीलाए तुह असरिसमिसिचरियं दटुं विलियं च दूरमोसरिउं ।. सासंकचित्तसिहंडिमंडलं मंडइ महागं गाढतवासासियं पि हु पुन्नं चिय कंतिसलिललहरीहिं । मुणिवइ तुह देहसरं लीलमउहवंसमुव्वहइ संजमसिरि कलयंती विलसइ सुत्था तुमंमि सहयारे । सीलंगसहसपत्ते महुरफले उन्नए सरले अल्लीणाओ वि तुमं गुरुं समुदं ससत्तगंभीरं । लक्खिज्जति न कत्थवि विज्जाओ महानईउव्व चउहाणुओग चउचरण ठवणचउरं सुदंतमुत्तुंगं । चारित्त चारु वण गहण चारिणं कोमलकरग्गं सव्वंगसुपइटुं सु सुहम दिढेि च दाण दुल्ललियं । सरलंत्त लंब पुच्छं समुव्व विज्जा तिव्वय कुंभं चरण करणोरु भवणं कुम्मय महविडवि गूडणो सूरं । सुवसत्थ लक्खणं दूर पिक्खणं तं पहु गइंदो अणुओगगणाणुरन्ना रत्ता करिणिव्व सियमिवल्लीणो । बग्गड़ देसे गुरु गिरि काणण विहरंत सिहि संघे बब्बेरपुरं सिय सव्वं मंगलं तं सिचुव्व सुवि मूई । आसिस गणंच तुमए सूरि पयमलंकियं जत्थ तुह गहिर महुर तारस्सराभिदेएसु भयइ सामत्तं । मोणट्ठिएसु नूणं जलहर परहुय सिहंडीसु ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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