Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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श्री नयविजय कविराय सीस श्रीजसविजय उवज्झाय हो जि० । तत्त्व विजय तस सीस प्रभु पूरयो सयल जगीस हो जि० ॥५॥
। इति श्री कुंथु जिन गीतं ।१७।
( ऊभा रहो जी ऊभा रहो ए देशी ) मुजरो ल्योजी मुजरो ल्यो अरनाथ जिणेसर मु.मु. लीला अलवसर । मु.मु. अरदास वीनवीइ मु.मु. तुम्ह गुण कुण मवीइ मु.मु. ॥ १ ॥ मु.मु. तुम्ह राज राजेसर मु.मु. प्राणनाथ परमेसर । मु.मु. लायक थी लायक मु.मु. दुरगति दुख घायक मु. ॥ २ ॥ मु.मु. चितडाना रे ठारक मु.मु. जगजन हित कारक । मु.मु. साहिब रंगीला मु.मु. तुम्हे छयल छबीला मु. ॥ ३ ।। मु.मु. तुम्ह नाथ निरंजन मु.मु. भव भय दुख भंजन । मु.मु. दरिसन सुखदाई मु.मु. तुम्हारी छइ वडाई मु. ॥ ४ ॥ मु.मु. समरथ सोभागी मु.मु. वल्लभ वडभागी। मु.मु. जाउं बलिहारी मु.मु. तत्त्व विजय सुखकारी मु. ॥ ५ ॥
। इति श्री अरनाथ जिन गीतं ।१८।
( ढाल-अलबेला नी देशी ) मल्लिनाथ मन मोहिउं रे लाल निरखत होत आणंद मन मान्यो रे । अजब मूरति बनी ताहरी रे लाल मुख मोहनवल्ली कंद रे म० ॥१॥ म० । तुझ करुणारस सागरिं रे लाल झीलइ मुझ मन हंस रे म० । ' पवित्र थाइ परमातमा रे लाल न रहइ पापनो अंस म० ॥२॥ म० ।
१३. सूरति पाठां०।
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