Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ चउसठि इंद्र मली लेई सुरगिरि निर्मल जल न्हवरायो । जब शचीपति मनि संशय पइठो तब चरणे मेरु कंपायो रे ॥ २॥ प्र० । त्रीस वरस गृहवास वसी प्रभु संयम शुद्ध सुहायो । दुःकर तप जप कष्ट क्रिया करी केवल ज्ञान उपायो रे ||३|| प्र० । चरम जिणेसर शासन नायक तुं जिनजी मनि भायो । वरस बहुत्तर आयु प्रतिपाली परमाणंद पायो रे ॥४॥ प्र० । श्री नयविजय कविराज विराजइ श्री जस विजय वाचक छाजइ । सेवक तत्त्व विजय इम जंपइ नित नित नवल दिवाजइरे ||५|| प्र० । । इति श्री वीरजिन गीतं |२४| मुनि भावविजयनी परति छै । Jain Education International सही १०८ । छ । शुभं भवतुः । श्रीः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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