Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ 26 तब राजुल रैवत चढी हो पुहती पिउके संग दीख ग्रही केवल लही हो पाल्यो ते प्रेम अभंग ||४|| ने० | रैवत मंडण नेमि गुंसाई जग जन नयनानंद | श्री यादव कुलि दिनमणी हो तत्त्वविजय सुखकंद ॥५॥ ने०| । इति श्री नेमिनाथ जिन गीतं |२२| २३ I ( दंड न देउं तुनइ माहरो ए देशी ) जिनवर तई मेरो मन मोहीओ पुरुषादानीया पास हो जि. प्रगट प्रताप ते ताहरो पूरन पूरक आस हो जि. ॥१॥ त० | हुं रंजिओ गुण ताहरइ जिम चोल रंगिउं चीर हो जि. । रंग करारी नवि टलइ जो नित नित धोवाइ नीर हो जि. ॥२॥ त० । वाणारसी नगरी धणी अश्वसेन कुलि चंद हो । मात वामा के नंदनां राणी प्रभावती कंत हो जि. ॥३॥ त० । कलियुगमांहि पामीओ देव तुम्हारो दीदार हो । एह कृतारथ लेखवुं भव सायर पार उतारि हो जि. ॥४॥ त० | उपगारी सहजइं अछइ अहि कीधो धरणराय हो । तत्त्व विजय सेवक सदा प्रेम प्रणमइ पाय हो जि. ॥५॥ त० । । इति श्री पार्श्वजिन गीतं | २३ | २४ ( थुणिओ रे मई तुं सुरपति जिउं थुणिओ ए देशी ) गायो गायो रे मइं वीर जिणंद मई गायो, सकल सुरासुर Jain Education International शुभमति करी मइ बंधायो रे, प्रभु वीर जिणंद मई गायो ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only सेवित पदयुग । www.jainelibrary.org

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