Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 19
________________ 14 ( देशी सूडला नी) अभिनंदन जिन आगलि वीनती रे निशि दिन करूं कर जोडि रे । देव दयाकर तुं हवइ पामिओ रे कर्म तणा मद मोडि रे ॥ १ ॥ अभि० । वार अनंती भवमांहि भम्यो रे दीठां दुख अनंत रे । पार न पामुं ते कहतां थकां रे ते जाणो छो गुणवंत रे ॥ २ ॥ अभि० । भवसायरमांहि पडतां थकां रे एकज तुझ आधार रे। चरण ग्रह्यां छइ मई ताहरां सही रे आवागमा निवार रे ।। ३ ॥ अभि० । संवर पिता माता सिद्धारथा रे नंदन गुणमणिखाणि रे। दुख भंजन देवह दोलती रे देज्यो कोडि कल्याण रे ।। ४ ॥ अभि० । चाकर याचें ठाकुर आगलि रे तिहां किसी करवी लाज रे । श्री जसविजय वाचक सीस कहई रे तुं जिन गरीब निवाज रे ॥ ५ ॥ अभि०। । इति श्री अभिनंदनजिन स्तवनम् ।।। (देशी हमीरीयानी ) सुमति सदा सुहंकरु सुमति तणो दातार , साजन जी प्रभु सेवा तो पामीइं जो होइं पुन्य अपार सा० ॥ १॥ सुम० ॥ तुम दीदार की आसकी लागी तुम्हस्युं जोर सा० मुख देखी नें हरखीइं जिम विधु देखी चकोर सा० ॥ २ ॥ सुम० ।। ज्ञान खजानो ताहरो भरिओ अखय भंडार सा० । काढंतां खूटे नही दिओ ज्ञानादिक सार सा० ॥ ३ ॥ सुम० ॥ प्रभु चरणइं लागी रह्यो मुझ मनि भमर सुरंग सा० । जेहस्युं जेहनुं मन बांध्यु तेहनो न मेलइ संग सा० ॥ ४ ॥ सुम० ।। ७. सवि जाणें छे भगवंत रे पाठां. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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