Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ 18 अहनिशि कर जोडी करी रे चाकर रहइ हजूर म० । ठाकुर मुजरो मानयो रे करयो मया महमूर म० ॥ ४ ॥ थोडइ कहइ घणुं जाणयो रे तुम्हे छो चतुर सुजाण म० । तत्त्व विजय कहइ माहरो रे साचो तुं सुलतान म० ॥ ५ ॥ ॥ वाल्हो० ॥ । इति श्री सुविधि जिन गीतं ।९। १० ( बहिनि बन्यो रे विद्याजी नो कल्पडो ... ए देशी ) सयण शीतल जिन पूजा करो ए तो ऊलट आणी अंग हो स० । तूठओ आपइ तूं सही ए तो वांछीत सुरक अभंग हो स० ॥ १ ॥ शीतल जिन पूजा करो ए तो ऊलट आणी अंग हो ए आंकणी। शीतल नयणे निरखतां ए तो शीतल थाइ चित हो स० । शीतल प्रकृति सोहामणी ए तो साची ताहरी प्रतीत हो स० ॥२॥ शी०।। मोहइ मन अलगां थकां तूं तो बोलइ नहिं लगार हो स० । तोहि पणि तुझ उपरि ए तो मोह्यो सयल संसार हो स० ॥३॥ शी०। लीनो हुं गुण ताहरइ जिम अलि लीनो मकरंद हो स० । तूंहिज सुरमणि सारिखो ए तो तुं मुझ सुरतरु कंद हो स० ॥४॥ शी०। "श्री नयविजय कविरायनो श्री जस विजय उवज्झाय हो स० । सीस तत्त्व विजय इणि परि भणइ हारे ए जिननी सुखदाय हो । स० ।। ५ ॥ शी० । । इतिश्री शीतल जिन गीतं ।१०। १०. हां जी लीनो पाठां०। ११. होजी श्री. पाठां० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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