Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 21
________________ 16 (देशी रसीयानी ) नेह भरिनिं जरिं रे निरखो नाहला अलवेसर एक वार वाल्हेसर । श्री सुपासजी चतुर शिरोमणी दिओ दरिसन धरी प्यार प्राणेसर || १ || नेह० || ७ इक तारी प्यारी तुझ मूरति सूरति वरणी न जाय जोगीसर । मोहई चित्तमां रे सुरनरनारिनां वली निरमोही कहेवाय कृपानिधि ||२|| नेह० ॥ जे जेहना चित्त मांहिं जे वस्या तेहनें ते जीवन प्राण परमेसर | वेध वेलाई रे जे रहइं वेगला ते कहि किम जाणि जीवनजी ||३|| नेह० || गरीब निवाज कहवाओ छो तुम्हो तो करयो सेवक सार सोभागी । दुख दोहग दालिद्र दूरिं करो निर्मल ज्ञान दातार दयाकर ||४|| नेह० ॥ ठाकुर एकज मई तूंहि आदरयो में धरयो तुम्ह ही स्युं रंग रंगीला । तत्त्व विजय प्रभुजीना ध्यान थी लहीइं ऋद्धि अभंग अमायी ॥५॥ नेह० ॥ । इति श्री सुपास जिन स्तवनं ॥७॥ ८ ( छोडी हो प्रभु छोडी चल्यो वनवास... ए देशी ) चंद्रप्रभ हो प्रभु चंद्रप्रभ सुणि स्वामी, वनती हो प्रभु वीनती माहरा मानतणी जी । जाणइ हो प्रभु जाणइ सयल तुं भाव, ज्ञानी हो प्रभु ज्ञानी तुं त्रिजग धणीजी ॥ १ ॥ प्रभुबिन हो प्रभु बिन कछु न सुहाइ, मीठी हो प्रभु मीठी वात ज ताहरी जी । अवर न हो प्रभु अवर न आवइ दाय, ८. शीता हो प्रभु शीता पाठां । Jain Education International मोहिनी हो प्रभु मोहिनी छइ तुम्हसुं खरीजी ॥ २ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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