________________
19
( माहरी सही रे समाणी ... ए देशी) श्री श्रेयांस साहिब हइ मेरा को नहीं तुम्हशुं भलेरा रे ।
महारा त्रिभुवन स्वामी । तो माटइ तुम्हसुं दिल लाया धरयो नेह सवाया रे... मा० ॥१॥ अंतरयामी नई कहुं शिरनामी खिजमतमां नहिं स्वामी रे मा० । जो हितवच्छल तूं छई साचो तो हृदय न करस्यो काचो रे मा०॥२॥ कूडी लालचि जेह लगावइ तेहथी सुख किम थावइ रे मा० । मोटानि जे चरणे वलगा ते किम थाइ अलगा रे मा० ॥३।। विष्णु नृपति तुझ तात सुहावइ माता विष्णु कहावइ रे मा० । सींह पुरी नगरी नो स्वामी तूं हि ज शिवगति गामी रे मा० ॥४॥ इक तारी तुझ ऊपरि मेरी न लखाइ गति तेरी रे मा० । श्री जसविजय सुगुरु सुपसाइं तत्त्व विजय सुख थाइ रे मा० ॥५॥ । इति श्री श्रेयांस जिन गीतं ॥११॥
१२
( अहो मतवाले साजनां... ए देशी ) श्री वासुपूज्य जिणेसरू प्रेमइ प्रणमो परभाति रे । लच्छि घणी घरि संपजइ पुहचाडइ मननी खांति रे ॥ १ ॥
श्री वासुपूज्य जिणेसरू आंकणी । तुं जगजीवन जंतुनि ताहरो छइ एक आधार रे । आलालूंबओ माहरइ तुं मुझ मनमोहन गार रे ॥२॥ श्री०। तुझनि ऊभा ओलगइ सेवक लख कोडाकोडि रे। समीहित पूरइ तेहनां कुण करइ तुम्हारी होडि रे ॥३|| श्री०।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org