Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 17
________________ 12 पं श्री तत्त्वविजयजीकृत चोवीस जिन स्तवनानि ॥ श्री गुरुभ्यो नमः। ( ईडर आंबा आंबिली रे ...... ए देशी ) ऋषभ जिणंद मया करी रे दरिसन दाखो देव । अलजो छई मनमां घणो रे करवा ताहरी सेव ॥ १ ॥ जिणेसर तुम्हसुं अधिक सनेह । प्राणेसर घj सांभरइ रे खिण मांही सो वार। नाम तुम्हारुं सोहामणुं रे एहज मुझ आधार ॥ २॥ जिणे० । तुं जिनजी मुझ वालहो रे जेहवो माहरो आतमराम । मन मधुकर मोही रह्यो रे तुझ चरणे अभिराम ॥ ३ ।। जिणे० । नेह पल्यो ते नवि टलइ रे जिम चोल मजीठ नो रंग । एहवू जाणी साहिबा रे पालयो प्रीति अभंग ॥ ४ ॥ जिणे० । करुणानिधि कृपा करुं रे परउपगारी कहवाय । श्री जसविजय वाचक तणो रे सीस तत्त्वविजय गुण गाय ।। ५ ।। जिणे० । । इति श्री आदि जिन भासः।१। ( शासनदेवत आवो नई अम्हारइ घरि पाहुणा रे लाल .... ए देशी।) अजित जिणेसर प्राहुणारे मुझ मन मंदिर आवि मेरे साहिबा।। भगति करुं भली भांति स्युं रे लाल दिन दिन चढतइ भावि मे० ॥ १ ।। अजित... । १. जेहवो आतमराम पाठां. । २. लागी पाठां. ३. स्तवनं पाठां. एवं सर्वत्र ज्ञेयम् । ४. आषाढ भूति अणगार में रे कहें गुरु अमृतवाणि रे योगीसर चेला, ए देशी पाठां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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