Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ पंडित कवि तत्त्वविजयजी रचित चोवीस जिन गीतो - सं. मुनि जिनसेनविजय महोपाध्याय श्री यशोविजयजी गणिवरना शिष्य तरीके जाणीता एवा कविवर श्रीतत्त्वविजयजीए रचेलां, चोवीश जिनेश्वरोनां २४ गीतो अत्रे प्रस्तुत करवामां आवे छे. १६ -१७-१८मा शतकोनी स्तवन- चोवीशीनी परंपरामां सुयोग्य रीते गोठवाय तेवी प्रौढता आ स्तवनोमां जोवा मळे छे. उपाध्यायजीना शिष्य होवुं ए स्वयं ज एक आशीर्वादरूप बीना गणाय तेवी छे; अने एमना शिष्यमां विद्वत्ता तथा काव्यशक्ति न आवे तो ज नवाई लागे. कृतिमा क्यांय रचना वर्षनो उल्लेख नथी मळतो. छतां अढारमा शतकनी आ रचना होवानुं अन्य ऐतिहासिक तथ्योना संदर्भमां नक्की थई शके तेम छे, एवं पूज्य वडीलोना मुखे जाणी शकायुं छे. आ गीतोनी एक हस्तप्रति ला. द. विद्यामन्दिर, अमदावाद मां छे, तेनी झेरोक्सना आधारे आ प्रतिलिपि करी छे. ७ पानांनी ते प्रतिमां जो के बीजुं पत्र नथी, छतां तेनी ओळख "चोवीसजिनगीत " (ला. द. क्रमांक ७६४३) एम अपाई छे, तथा घणां स्तवनोने छेडे 'गीतं' शब्द प्रयोजायो छे, तेथी अहीं पण ते ज नामे ओळखावी छे. पत्र २ नी न्यूनताने लीधे खूटतां अंशो चोथा गीतनी २ कडी, ५-६-७मा गीतो, पू. आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजीनी पासेथी प्राप्त थएली आ कृतिनी अपूर्ण प्रतिना आधारे अहीँ उमेरेल छे. ते प्रतिनां प्राप्त पत्रो ५ छे, तेमां १ थी २१ गीतो छे, २२मुं अपूर्ण छे, अने तेमां दरेक गीतने 'स्तवन' तरीके ओळखावेल छे ; ए प्रतिना प्रारंभे “सकलवाचकचक्रचक्रवर्त्ति महोपाध्याय श्री १९ श्रीजसविजयगणिशिष्य पंडित प्रवर प्रधान पंडित श्री ७ श्री तत्त्वविजयगणिचरणकमलेभ्यो नमो नमः " निर्देश छे, तेथी ते प्रति तत्त्वविजयजीना शिष्य नी होवानुं अनुमान करीए तो अनुचित नथी जणातुं. आ प्रतिना पाठो अत्रे पाठां तरीके नोंधेल छे. एम आधारभूत आदर्श - प्रति १८मा शतकनी होवानुं अनुमान थाय छे, अने तेना अंतभागे "मुनि भाव विजयनी परति छे" एवो उल्लेख छे. प्रतिनी नकल आपवा बदलला. द. विद्यामन्दिरनो आभार मानुं छं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122