Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ उपसंहार विक्रमना सोळमा सैकामां ग्रन्थलेखनक्षेत्रे नोंधपात्र काम थयुं छे. आजे प्राचीन ज्ञानभंडारोमां जे हजारो हस्तप्रतो मळे छे तेमां घणो भाग सोळमा सैकानो छे अने जेटली सुवर्णाक्षरी 'श्रीकल्पसूत्र' वगेरे मळे छे ते तो प्रायः बधीज. आजे लगभग ४५ थी ५०नी संख्यामां सुवर्णाक्षरी ग्रन्थो मळे छे ते बधा ज सोळमा सैकामां लखायेला मळे छे. ज्ञान प्रत्येनी अपार भक्ति अने उपदेशकोना उपदेशनुं केन्द्र आ ज्ञानभक्ति हशे (आजे चैत्य भक्ति छे तेम-) तेनुं ज आ सुपरिणाम आपणे मळ्युछे. ॥चित्कोश प्रशस्तिः ॥ श्रीमन्महे महेभ्यश्रेणिसमृद्धेऽत्र भेलडी नगरे । पूर्वं पाल्हणसिंहः प्राग्वंशावतंसक: समऽभूत् ॥ १ ॥ तत्रैव सुजनरंजन-जिनभवन विधापनैकविधिना यः । सुकृतार्थी सुकृतार्थीचकार निजर्जितं वित्तम् ॥ २ ॥ पाल्हणदेवी नाम्नी गृहिणी स्पृहणीयसद्गुणा तस्य । निजनिर्मलतरपक्ष-द्वितययुता राजहंसीव ॥३॥ डूंगरनामा तनयस्तयोरभूद् भूरिगुणगणोपेतः । सारूः सा रूपवती सती च सीतेव यद् युवती ॥ ४ ॥ तत्तनयौ प्रत्तनयौ विशिष्टविनयादुभौ शुभौ जातौ । प्रथमः सीधरनामा सोभाक: शोभते ह्यपरः ॥ ५ ॥ निर्मलदृष्टिनिरीक्षणविशुध्धनाणकपरीक्षणपराभ्याम् । याभ्यामणहिल्लपुरे परीक्षकत्वाभिधा दधे ॥ ६ ॥ सीधरवधूः कपूरी गुणैकपूरैः प्रपूरितदिगंता । विनय विवेक विचार सागर सदाचारश्रृंगारा ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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