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१३. श्री विमलनाथ जी कम्पिला १४. श्री अनन्तनाथ जी अयोध्या १५. श्री धर्मनाथ जी रत्नपुरी १६. श्री शान्तिनाथ जी हस्तिनापुर १७. श्री कुन्थुनाथ जी हस्तिनापुर १८. श्री अरहनाथ जी हस्तिनापुर १६. श्री मल्लिनाथ जी मिथिलापुरी २०. श्री मुनिसुव्रतनाथ जी राजगृह २१. श्री नमिनाथ जी मिथिला २२. श्री अरिष्ट नेमिनाथ जी शौरीपुर २३. श्री पार्श्वनाथ जी काशी २४. श्री महावीर स्वामी जी कुंड ग्राम-वैशाली
इन सम्पूर्ण तीर्थकरों ने कठोर-से-कठोर तप करके दिव्यज्ञान प्राप्त किया था। सभी ने प्रव्रज्या लेकर, संसार को अपने दिव्य-ज्ञान से आलोकित किया था। उन्होंने अनेक गिरे हुए प्राणियों को ऊपर उठाया, अनेक को नव-प्राण दिया और अनेक के हृदय में ज्ञान का दीपक जलाकर उन्हें जीवन के वास्तविक सुपथ पर चलाया। युग बीत गए हैं, पर ये सभी तीर्थकर अपने लोकोपकारी कार्यों से आज भी दिव्याभा के रूप में कोटि-कोटि मानवों के हृदय में ज्योतित हो रहे हैं और इसी प्रकार सदा-सदा ज्योतित रहेंगे।
चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम तीन तीर्थकरों के विषय में