________________
क्या है, आत्मा क्या है, शरीर क्या है और मृत्यु क्या है ? इतना ही नहीं, उन्होंने इस रहस्य को भी भली-भांति समझ लिया कि निर्वाण क्या है, मोक्ष क्या है, कैवल्य क्या है और उसकी प्राप्ति मनुष्य को किस प्रकार हो सकती है ? एक ओर तो वह सर्वज्ञ बने और दूसरी ओर उन्होंने क्रोध, ईर्ष्या, विरोध, रोग, दुःख और जरा आदि पर विजय प्राप्त करके प्रयत्न अवस्था में प्रत्येक स्थिति में अपनी समदर्शिता स्थापित की। भगवान महावीर इस प्रकार पूर्ण समदर्शी बनकर ज्ञान का शंख फूंकने के लिए निकल पड़े। उन्होंने तीस वर्षों तक निरन्तर बहुत से स्थानों का भ्रमण करके ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने कितने ही मनुष्यों के हृदय के अज्ञानांधकार को दूर किया। उन्होंने कितने ही मनुष्यों के ताप को मिटाया, कितनों ही के जीवन को वास्तविक पंथ पर चलने के लिए प्रेरणा दो और कितनों ही को निर्वाण प्राप्त करने में सहायता प्रदान की। उनके ज्ञान को पाकर, उनकी कृपा-सुधा को पीकर मानवसमाज धन्य हो उठा, आपदा और दुखों के बन्धनों से मुक्त हो
गया।
भगवान ने तीस वर्षों तक घूम-घूमकर उपदेश दिए। अनेक मनुष्यों ने उनसे दीक्षा ग्रहण की । संत, गृहस्थ, बड़े-बड़े नृपति आदि सभी उनके संघ में शामिल हो गए। उनके संतशिष्यों की संख्या चौदह सहस्र थी। उनमें ग्यारह प्रधान थे। जैन-परम्परा में ये सभी प्रधान शिष्य गणघर' के रूप में विख्यात हैं । ये पहले वैदिक मतावलम्बी थे। इनमें कई महान् पंडित थे और समाज में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। गौतम,
८